आ चल के ढूंढ कहीं ज़मीन अपनी
थी कौम की मेरी खोई ज़मीन अपनी।
हूँ लाख बुरा सही नागवार ना जान
पास खड़ा हो छोड़ गद्दीनसीन अपनी।
यह टूटा सा घर खुला दिल तेरे वास्ते
ड्योढ़ी पे लाने में समझे तौहीन अपनी।
पूराना है दर्द दवा की जाये खास
खुराक कुछ ले दे छोड़ संगीन अपनी।
यूँ न बिगाड़ मुस्तकबिल नोजवाँ का तू
माजी में देख तश्वीर थी रंगीन अपनी।
एतमाद रख कोशिश कर बार-बार
दौड़ाये घोड़े सब कस कर जीन अपनी।
महफ़िल में आये हैं उमरा बनठन कर
मगलोज कर आराइसे शौकीन अपनी।
ना सियासत विरासत तिजारत के हुये
अफसोस थड़ी पे गुजरी सीन अपनी।
बात सुन लीजिये जाननी हो सीरत
जिगर निकाले मेख देखे मीन अपनी।
गेस्ट पॉएट शमशेरभालु खान गाँधी
जिगर चुरुवी
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जिगर चुरुवी की कविता”
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