एक ताजा ग़ज़ल
मेरे दिल को अब वो जलाने लगेे हैं!
मुझे फिर वो दिन याद आने लगे हैं!***
जवाँ जब से मुफ़लिस की बेटी हुई है!
पड़ोसी के पत्थर भी आने लगे हैं!!
चमन की हिफ़ाज़त नही़ हो रही है!
उदू अपने सर को उठाने लगे हैं.!!
जिन्हें हमने पलकों पे कल तक बिठाया
वही ख़ुदसरी अब दिखाने लगे हैं!!
हुआ जब से तरके ताअलुक़ हमारा !
वो अब खवाब में मेरे आने लगे हैं !!
निछावार किया जिन पे हमने दिलो जाँ!
वही दिल पे नश्तर चलाने लगे है़ं!
– गेस्ट पॉएट डा.नश्तर ज़ैदी.
जयपुर( राज)
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