बिंदौरी (गेस्ट ब्लॉगर हैदर अली अंसारी)

Sufi Ki Kalam Se


बिंदोरी नाम तो आप सब ने सुना ही होगा बिंदोरी लफ्ज मन में आते ही हमारे सामने एक घोड़ा और घोड़े पर बैठा हुआ दुल्हा उसके आगे चलता हुआ बैंड या डीजे और उस पर बजती हुई किसी फिल्मी गाने की धुन, दूल्हे के घोड़े के पीछे चलते हुई सज धज कर उसके बाराती रिश्तेदार सब अपनी खुशियों मैं झूमते हुए चलते जाते हे कुछ नौजवान आतिशबाजी के माध्यम से दूल्हे की शादी में ऐसा माहौल बनाते हे की रात को सोते हुए बच्चे नींद से जागकर डर से सहमे हुए अपनी मां की बाहों में लिपट जाते हे और जिधर जिधर से बिंदोरी गुजरती है उसे देखने के लिए छतों पर खड़े होकर अपने आंगन से उस बिंदोरी के निहारना कुछ बिंदोरी मे तो बजती हुई गानों की धुन पर होने वाले डांस और लड़कियों का सड़को पर खुल्लम खुल्ला बारातियों के सामने अपनी कला का मुजाहिरा करने का एक जरिया बन जाती हे बिंदोरी वैसे इस्लाम में इन सब की इजाजत नहीं हे, इस्लाम फिजूल खर्ची से बचने की सख्त ताकीद करता है लेकिन फिर भी मुसलमानो में भी आजकल शादी के मुबारक मौके पर यह बिंदोरी और बिंदोरी में यह सब खुराफात आम हे आखिर क्यूं यह गोर ओ फिक्र का मुकाम हे लेकिन में यहां बिंदोरी के एक और पहलू पर आपकी तवज्जो चाहता हुं
बिंदोरी में बारात और उसमे शामिल लोगों के लिए रोशनी की व्यवस्था का भी इंतजाम किया जाता है और आप सबने देखा होगा बड़े बड़े रंग बिरंगे भारी भरकम वो घमले, छतरिया जिन्हें पकड़े हुए होते हे कुछ मासूम बच्चे जो उस वजन के उठाने को क्षमता नही होने के बावजूद भी अपनी मजबूरी के चलते हुए उसे अपने कंधो पर उठाए रखते हुए आगे बढ़ते हे और गरीबी मजबूरी का खुले आम मुजाहिरा करते हे कई बार बच्चे हादसों के शिकार भी हो जाते हे लाखो रुपया पानी की तरह बहाने वाले वो लोग जो उस बिंदोरी में शामिल होते हे यह सब उन्हें नजर नहीं आता समाज की हकीकत का एक जीता जागता हुआ मंजर हम सब के सामने होता है लेकिन हम देख तक नही पाते हे कहने को तो सरकार द्वारा बाल शोषण के खिलाफ सख्त कानून बना हुआ है लेकिन कुछ कानून सिर्फ़ फाइलों में ही सिमट कर रह गए हे मासूम बचपन को बरबाद होते हुए हम हर जगह आसानी से देख सकते हे

जिन की उम्र कलम पकड़ने की होती है वो भारी भरकम बोझ 50 रुपए कई कई 100 रुपए के एवज में कई घंटे तक देर रात तक उस बोझ को कंधो पर उठाए हुए चलते जाते हैं ठेकेदार जो की कुछ मजदूरी ज्यादा बचाने के लालच में उसे सस्ते सस्ते ये नन्हे मजदूर हर जगह आसानी से मिल जाते हे कई बर इसी बिंदोरी में दूल्हे के वालिद या रिश्तेदारों के द्वारा उसी बिंदोरी में लुटाए जाने वाले कड़क कड़क नोट जिन्हे प्राप्त करने के लिए कई बच्चे लोगो के पैरो तले कुचल दिए जाते हे
क्या हम अपनी खुशी के मौके पर क्या यह जुल्म जो हर कस्बे हर शहर में मासूमों पर किया जाता है उसे रोक सकते हे ? सोचिए गा जरूर
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गेस्ट ब्लॉगर हैदर अली अंसारी


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