कब मिलेगी आजादी कब मिलेगी आजादी
कल भी आँखों मे लहू था आज भी हे नया कुछ नहीं
कल भी हर सू तन्हाई थी आज भी हे नया कुछ नहीं
कल भी घनघोर अंधेरा था आज भी हे नया कुछ नहीं
कल भी जुल्म होता था आज भी हे नया कुछ नहीं
कल भी लाशें तड़पती थी आज भी हे नया कुछ नहीं
कल भी ना इन्साफी थी आज भी हे नया कुछ नहीं
कल भी इंसा शर्मसार था आज भी हे नया कुछ नहीं
कल भी सत्य हारा था, आज फिर हारा हे नया कुछ नहीं
कल भी माँ रोती थी आज भी रोती हे नया कुछ नहीं
कल भी बच्चे भूखे थे आज भी भूखे हे नया कुछ नहीं
कल भी महंगाई खाती थी आज भी खाती हे नया कुछ नहीं
कल भी किसान परेशा था आज भी हे नया कुछ नहीं
कल भी सड़के लहू से भीगी थी आज फिर भीगी नया कुछ नहीं
कल भी जमीदार सब कुछ था आज भी हे नया कुछ नहीं
कल भी सच बिक जाता था आज भी हे नया कुछ नहीं
कल भी हक पर जो थे वो ज़िन्दान मे थे आज भी हे नया कुछ नहीं
कल भी न्याय बिकता था आज भी हे नया कुछ नहीं
कल भी लाशों पर रोये थे आज भी हे नया कुछ नहीं
कल भी हम परेशा थे आज भी हे नया कुछ नहीं
कल भी सपनों मे जीते थे आज भी हे नया कुछ नहीं
कल भी बहने रोती थी आज भी हे नया कुछ नहीं
कल भी नौ जवा मरता था आज भी हे नया कुछ नहीं
कल भी भेदभाव होता था आज भी नया कुछ नहीं
कल भी थे गुलामी मे आज भी हे नया कुछ नहीं
कल भी जुबां पर ताले थे आज भी हे नया कुछ नहीं
कल भी जुल्म होता था आज भी हे नया कुछ नहीं
अगर हैदर बयां सही किया मेने तो
एक सवाल हे बस यह मेरा
कब मोसम यह बदलेगा कब बहार आएगी
कब जुल्म यह मिटेगा कब घटा यह जाएगी
कब मिलेगी आजादी, कब आएगी आजादी
कब मिलेगी आजादी कब मिलेगी आजादी।
@ हैदर अली अंसारी
सामाजिक कार्यकर्ता एंव लेखक
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