सूफ़ी की कलम से.. ✍️
मजदूर कानून नया पर व्यथा पुरानी (नासिर शाह, सूफ़ी)

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मजदूर कानून नया पर व्यथा पुरानी (नासिर शाह, सूफ़ी)


देश में आए दिन, नए नए कानून बनते हैं फिर उन पर एक लंबी बहस होती है और कुछ दिन की सुर्खियों के बाद वह कानून हमेशा हमेशा के लिए संविधान के पन्नों मे समा जाते हैं। हम बात कर रहे हैं, मजदूरी संहिता विधेयक (कोड़ आन वेजेज बिल) की, जिसे पुराने कानूनो से बदल कर नया तो कर दिया है लेकिन क्या पुराने कानूनो की तरह ही इससे भी मजदूरों का लाभ हुआ है या सिर्फ ये पन्नों तक ही सीमित है।
गौरतलब है कि 2017 मे मजदूरी संहिता विधेयक कानून को नए तरीके से दुबारा लाया गया। यह कानून पूर्व में बने मजदूरी भुगतान कानून 1936, न्यूनतम मजदूरी कानून 1948, बोनस भुगतान कानून 1965, समान पारिश्रमिक कानून 1976 का स्थान ले रहा है। समय के साथ साथ देश में कानूनों के नाम तो बदल रहे हैं लेकिन उनसे उठने वाले प्रश्न यथावत है। क्या इन कानूनो के अनुसार, वर्तमान एंव पूर्व में सबको समान काम का समान वेतन मिल पाया है? क्या सम्पूर्ण देश में मजदूरों की समय सीमा निश्चित की जा चुकी है? क्या मजदूरों को मजदूरी का भुगतान, कानून के नियमानुसार हो रहा है? ऐसे ही अनगिनत सवाल मजदूरों के दिलों में सुई की तरह धँसे हुए हैं जिनका जवाब कानून कि किताबों में तो है लेकिन धरातल पर ऐसा कुछ नजर नहीं आता है।
अगर नए मजदूर कानूनो का गहन विश्लेषण करे तो ये समझ में आता है कि मजदूरों की समस्या का समाधान कम हुआ है और कार्यभार ज्यादा बढ़ा है। मजदूरी मिलने संबधी समस्या यथावत है। नए कानूनो के अनुसार मजदूरों एंव कामगारों को पीएफ, ग्रेच्युटी, आदि शब्दों के जाल में उलझाकर उनके हाथ में कम से कम मजदूरी दी जाती है और बाकी राशि भविष्य में देने का वादा कर कामगारों की समस्याओं को मझधार मे छोड़ दिया जाता है। जब कानून बनना होता है तब सरकारें, कानून के दस फीसदी फायदों को सुर्खिया बनाकर दिखाती है और कानून के सम्पूर्ण नियमो को फाइल बनाकर संविधान का हिस्सा बना देती है। लोगों के पास ना तो इतना समय होता है और ना ही इतनी जानकारियां की वह कानूनो को विस्तृत रूप से जान सके। कुछ सालो बाद नतीज़ा ये होता है कि हमारी मिलने वाली मजदूरी मे कई प्रावधान तय किए जा चुके हैं, जिनके फायदे हमे मिले ना मिले लेकिन नुकसानदायक चीजे लागू हो चुकी होती है। जैसे कार्यभार का बढ़ना, नकद मिलने वाली सैलरी का कम होना, नयी नयी पॉलिसीयों के माध्यम से पैसा कटना और स्वयं के पैसों का अनिश्चितकाल तक के लिए कंपनियों द्वारा उपयोग करना जैसे कई नियमो के फ़ेर में मजदूर उलझ कर रह जाता है।
2017 से शुरू हुआ मजदूरी संहिता विधेयक आखिरकार 2019 मे पारित होकर कानून बन चुका है। एक अप्रैल 2021 से उसके लागू होने और काम करने का समय शुरू होने वाला है। इस लंबी प्रक्रिया पर देश के बुद्धिजीवी वर्ग का ध्यान तो लगातार बना हुआ है लेकिन जिन समस्त कामगारों के लिए ये कानून है, उन्हें अब धीरे धीरे कानून के बनने और उससे होने वाले परिवर्तनों का पता लगने का समय आ गया है।

नासिर शाह (सूफ़ी) साभार कांति

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