बसंत पंचमी विशेष, गेस्ट ब्लॉगर में पढ़िए रश्मि नामदेव का विशेष आर्टिकल
ऋतुओ के राजा बसंत का हुआ आगमन
ऋतओं में सर्वश्रेष्ठ ऋतु बसंत को कहा गया है, क्योंकि यह वह समय होता है जब प्रकृति में परिवर्तन होने लगता है। अर्थात सर्दी से गर्मी की ओर। ऋतु परिवर्तन का समय वह समय होता है जब न तो ज्यादा गर्मी होती है ना ज्यादा सर्दी होती है। प्रकृति में मनोरम वातावरण होता है जो कि मन को प्रफुल्लित करता है। इसे पतझड़ सावन भी कहा जाता है। जब वृक्ष अपने पुराने पत्तों को त्याग, नवजीवन के रूप में प्रस्फुटित होकर जीवन को फिर से जीना सिखाते हैं।
यह वह ऋतु है, जो जीवन का अंत नहीं जीवन की शुरुआत पर जोर देती है। नई-नई कोंपले अंकुरित होती है, खेतों में सरसों के लहलहाते फूल ,फूलों पर बहारें आ जाती हैं। कोयल की मनोरम कुक चारों दिशाओं में गूंजती रहती है। गेहूं की बालियां खिलने लगती है भंवरो का गुंजन, रंग बिरंगी तितलियों का इठलाना, वातावरण को मनमोहित कर देता है। कहते हैं कि आज के दिन विद्या की देवी मां सरस्वती का जन्म हुआ था। मां सरस्वती के हाथों में वीणा तथा शेष दोनों हाथों में पुस्तक व मोतियों की माला होती है। कहा जाता है कि जब ब्रह्मा जी ने मां सरस्वती को वीणा बजाने का अनुरोध किया तो उस के फल स्वरुप सभी प्राणियों मैं बोलने की क्षमता का विकास हुआ।
मां सरस्वती को शारदा, वीणापानी, वागीश्वरी ,हंस वाहिनी अनेक नामों से जाना जाता है। पुरानी मान्यताओं के अनुसार कृष्ण जी ने मां सरस्वती को वरदान दिया था कि बसंत पंचमी के दिन तुम्हारी पूजा आराधना की जाएगी। तभी से वरदान के फलस्वरुप माघ मास की शुक्ल पंचमी को बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा होने लगी। इस दिन पीले रंग का विशेष महत्व होता है।
– गेस्ट ब्लॉगर रश्मि नामदेव कोटा, राजस्थान
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