तड़पती आवाजें किताब पर उर्दू जबान का पहला तजकिरा (समीक्षा)- इलियास नाज़

Sufi Ki Kalam Se

तड़पती आवाजें किताब पर उर्दू जबान का पहला तजकिरा (समीक्षा) मागंरोल शहर के जाने माने शायर व शिक्षक जनाब इलियास नाज़ मागंरोल साहब द्वारा
पाठकों की सुविधा के लिए उर्दू के ठीक नीचे हिन्दी अनुवाद भी दिया गया ह

تڑپتی آوازیں ناصر شاہ صوفی کی کتاب پر تبصروں الیاس ناز مانگرولی کے قلم سے
زبان و ادب میں بہت سی کتابیں شائع ہوتی رہتی ہیں اور ادوار کے مطابق مضامین ہمارے ادیب اور شاعروں کاموضوع ہوتے ہیں۔حال ہی میں شائع ہوئی کتاب ناصر صوفی صاحب کی ،تڑپتی آوازیں، باصرہ نواز ہوئی جو افسانوں پر مشتمل ہے اس میں کل چھ افسانے شامل ہیں جن کے مضمون مختلف مگر حالاتِ حاضرہ کی جیتی جاگتی تصویر نظر آتے ہیں۔
پیرا ٹیچر افسانہ سرکاری مدارس کو دی جانے والی عصری تعلیم کا ایک نمونہ ہے ۔جس میں بتایا گیا ہے کہ کس طرح ایک اچھے خاصے مدرس کو مالی اعتبار سے کس قدر مجبور و کمزور کر دیا گیا ہے کہ وہ آنے والی نسلوں کے مستقبل کا کیا خیال رکھ سکتا ہے جو خود اپنی روز مرہ کی زندگی کے مسائل خاص کر اقتصادی حل کر نے میں جوجھ رہاہو یہ سرکار کی طرف کچھ اور نہیں بلکہ تعلیم حاصل کر کے دوسروں کو تعلیم دینے والوں کے ساتھ ایک مذاق نظر آتا ہے
،گوجان،افسانے میں مذہبی طور پر گاۓ کا احترام دکھاتے ہوۓ اس کی موجودہ حالت پر طنز ہے جسکو آپ ہم اور دیگر مذہب کے ہندووادی ٹھیکیدار بخوبی سمجھتے ہوۓ ماں ہونے کا ڈھونگ گاۓ کے ساتھ کرتے ہوۓ اس کی بڑی حالت سے بخوبی واقف ہیں۔ اور دھنوانوں کی جگہ غریبوں کے دل میں گاۓ کا احترام پیدا کرنے والے انسان صرف گاۓ
کی رکشا کو اپنی روزی روٹی کا سامان فراہم کرنے کا ذریعہ سمجھے ہوۓ ہیں۔
،کالا عشق،افسانہ رنگ ونسل کے ساتھ تعلیمی معیار پر ایک حقیقی بحث ہے ۔اور امیر غریب کی کھائی کو دکھاتے ہوۓ یہ بھی بتایا گیا ہے کہ تعلیم‌کسی حسن کی محتاج نہیں ہوتی مگر عشق بھی حسن کی قید و بند کو توڑ کر آزادی پانے کا حوصلہ رکھتا ہے۔ ماں باپ کی خواہش جو بچو پر مصیبت بن جاتی ہے اس کا بھی تذکرہ اس میں کیا گیا ہے۔حالات کے اعتبار سے پس منظر بہت عمدہ ہے۔
نجیب ایک حقیقت پر مبنی جے این یو کا افسانوی پہلو ہے جس کا حقیقت سے گہرا تعلق ہے ۔اس میں تعصب اور سرکاروں کے قومیت نواز قوموں کی نسل کشی کا جیتا جاگتا تصور پیش کیا گیا ہے ۔غضب تو یہ ہے کہ ان حالات کو پیدا کرنے میں جو لوگ شریک ہیں ان کی پشت پناہی میں سرکار یں شامل نظر آتی دکھائیے دیتی ہیں ۔آنے والے وقت میں اگر یہی حالات رہے تو بڑی بڑی یونیورسٹیوں سے عام انسان کا اعتماد ختم ہوجاۓ گا اور انکو تعلیم کا نہیں بلکہ غنڈوں کو تحفظ دینے کا اڈا سمجھیں گے۔
،اناج کے دام،میں بھارت کے کسان کی اصلیت بیان ہوئی ہے جو ایک حقیقت ہے ۔نسل در نسل کس طرح کسان کھیتی میں اپنا خونِ جگر دے کر بھی توانائی حاصل کرنے کے بجاۓ اپنی جان دے دیتا ہے اور سرکاریں تماش بین بنکر صرف معاوزے کا کھیل اپنی سیاست کے داؤ پیچ دکھانے میں کھیلا کرتی ہیں۔
تین طلاق ہمارے وطنِ عزیز میں ایک عرصہ سے سرکار اور مسلم قوم کے درمیان ایک مدعا رہاہے جو شریعت کے قانون سے ذیادہ سیاسی عیاریوں سے ٹارگیٹ ہو تا رہا ہے ۔اس میں خود مسلمان کہلانے والے اپنے آپ کو جدیدیت سے سرفراز کرتے ہوۓ شریعت کی نا سمجھی کی بنا پر حکومتوں کی سیاست کا ساتھ دیتے ہیں ۔اسلام مکمل ضابطہٌ حیات ہے مگر اس کا ایک پہلو سامنے رکھ کر اسلام دشمن صرف نام کے مسلمانوں کا سہارا لے کر اپنی روٹیاں سیکھنے کا کام کرتے ہیں جو اس افسانے میں بتایا گیا ہے
دینی لاعلمی پر بہت گہری چوٹ کی گئی ہے اور خود کو دینی اور دنیوی تعلیم سے آراستہ ہو نے پر زور دیا گیا ہے ۔ہمارے کم علم و عقل علماء کابھی ذکر قابلِ تعریف ہے۔
آخر میں اگر میں یہ کہوں کہ حالاتِ حاضرہ کے اوپر افسانوی لباہے میں ایک قراری چوٹ ہے تو بیجا نہیں ہوگا۔
کتاب میں پرف ریڈنگ کی کمی رہی ہے اور املا پر خیال نہیں کیا گیا آئندہ اس کے بارے میں توجہ دی جاۓ تو آنے والوں اور ادب وزبان کے لئے بہتر ہو گا ۔آخر میں دعاگو ہوں کہ اللہ کرے زورِ قلم اور ذیادہ ۔
الیاس ناز
مانگرولی باراں راجستھان

#हिन्दी_अनुवाद
#तड़पती_आवाजें, नासिर शाह (सूफ़ी) की किताब पर तबसेरा, इलियास नाज़ मागंरोली के कलम से…*
जबान व अदब में बहुत सी किताबें शाये (प्रकाशित) होती रहती है अदवार के मुताबिक मजामीन हमारे अदीब और शायरों के मौजू होते हैं। हाल ही में शाये हुई किताब नासिर सूफ़ी साहब की तड़पती आवाजें बासेरा नवाज़ हुई जो अफसानो पर मुशतमिल है, उसमे छः अफ़साने शामिल हैं, जिनके मजमून मुख्तलिफ मगर हालात हाजरा की जीती जागती तस्वीर नजर आते है।
#पैराटीचर अफ़साना सरकारी मदरसों को दी जाने वाली शिक्षा का एक नमूना है, जिसमें बताया गया है कि किस तरह से एक अध्यापक को आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है जिसकी वजह से वो आने वाली पीढ़ियों के भविष्य के बारे में चिंतित हो जाता है क्योंकि जो स्वयं की रोज़मर्रा की जरूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं हो, वो कैसे आगे की कोई योजना बना सकता है।
#गौजान* – कहानी में मजहबी तौर पर गाय का एहतराम दिखाते हुए उसकी मोजूदा हालत पर तंज कसा गया है जिसको आप, हम और दीगर मजहब के मजहबी ठेकेदार बखूबी समझते हुए मां होने का ढोंग गाय के साथ करते हैं जबकि वह उसकी बुरी हालत से बखूबी वाकिफ़ है। और धनवान की जगह गरीबो के दिल में गाय का एहतराम पैदा करने वाले इंसान सिर्फ गाय की रक्षा को अपनी रोजी रोटी का सामान उपलब्ध करने का जरिया समझे हुए हैं।
#काला_इश्क ये कहानी रंग ओ नस्ल के साथ तालीमी मैयार पर सच्ची बहस है और अमीरी गरीबी की खाई को दिखाते हुए ये भी बताया गया है तालीम किसी हुस्न की मोहताज नहीं होती मगर इश्क भी हुस्न की कैद को तोड़ कर आजादी पाने का हौसला रखता है। मां बाप की इच्छा जो बच्चों पर मुसीबत बन जाती है उसका भी जिक्र इस कहानी में किया गया है। हालात के अनुसार कथानक शानदार है।
#नजीब एक सच्ची घटना पर आधारित कहानी जिसका सच्चाई से गहरा नाता है जिसमें ताअस्सुब और सरकारों के कौमीयत नवाज कौमौ की नस्ल कुशी का जीता जागता तसव्वुर पेश किया गया है। गजब तो ये है कि इन हालात को पैदा करने मे जो लोग शामिल हैं उनके संरक्षण में सरकारे नजर आती है। आने वाले समय में अगर यही हालात रहे तो बड़ी बड़ी यूनिवर्सिटीज से आम इन्सान का भरोसा खत्म हो जाएगा और इनको शिक्षा का नहीं बल्कि गुंडों को संरक्षण देने का अड्डा समझा जायेगा।
#अनाज_के_दाम में भारत के किसानों की वास्तविकता का वर्णन किया गया है। पीढ़ी दर पीढ़ी किस तरह से किसान खेती में अपना खून ए जिगर देकर भी उन्नति प्राप्त करने की जगह अपनी जान दे देता है और सरकारें तमाशबीन बनकर सिर्फ मुआवजे का खैल अपनी सियासत चमकाने के लिए खेला करती है।
#तीन_तलाक हमारे देश में काफी समय से सरकार और मुस्लिमों के बीच एक बड़ा मुद्दा रहा है। ये मुद्दा शरीयत के कानून से ज्यादा राजनैतिक दलों का टार्गेट होता रहा है। उसमें खुद मुसलमान कहलाने वाले अपने आपको आधुनिकता से ओतप्रोत करते हुए शरियत की नासमझी के आधार पर सरकार की राजनीति का साथ देते हैं। इस्लाम धर्म अपने आप में पूर्ण है मगर उसका केवल एक पहलू सामने रखकर नेता लोग सिर्फ नाम के मुसलमानों का सहारा लेकर अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने का काम करते हैं जो इस कहानी में अच्छे से बताया गया है। धार्मिक अज्ञानता पर गहरी चोट की गयी है और स्वयं को धार्मिक और दुनियावी शिक्षा प्राप्त करने पर जोर दिया गया है। मुस्लिम समुदाय के कम इल्म रखने वाले धर्म गुरुओं का जिक्र भी कहानी में काबिल ए तारीफ है।
अंत में अगर मैं कहूँ कि वर्तमान हालात पर कहानियों का ये लिबास एक करारी चोट है, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
किताब में प्रूफ रीडिंग की कमी रही है और इमला पर ख्याल नही किया गया है। भविष्य में इन गलतियों पर ध्यान दिया जाये तो आने वालों भाषा साहित्य के लिए बेहतर होगा। अंत में दुआ करता हूं कि अल्लाह तआला लिखने वाले को कामयाबी दे।
समीक्षक – इलियास नाज़
मागंरोल जिला बारां, राजस्थान


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