हम्द
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हो मेरा काम हर शुरू तेरे नाम से
मुझको रगबत हो बस तेरे इस्लाम से
छोड़ दू हर वो राह जो गाफिल करे
हो मुहब्बत सदा तेरे अहकाम से
तू मुझे दूर रखना हर बुरे काम से
यानी हश्र ओ कियामत के अंजाम से
जो हुए है गुनाह माफ कर ऐ खुदा
पाक मुझको तू रख झूटे इल्जाम से
हो सदा जिक्र तेरा लबो पर मेरे
हो मयस्सर सुकू इक तेरे नाम से
हो तलब बस इल्म ए दीं ही की अब
हो मुझे निस्बत उल्मा ओ इमाम से
– गेस्ट पॉएट रईस अहमद मागंरोल
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