‘हम्द’ गेस्ट पॉएट कॉलम में पढ़िए मागंरोल के रईस अहमद की हम्द

Sufi Ki Kalam Se

या रब तू देख कैसा हुआ मेरा हाल है
साथी है न कोई न पुरसाने हाल है

अपनी ही गफलतों का ये सारा बवाल है
अब तू ही है सहारा तुझी से सवाल है

छोड़ा है सबने मुझको इक तू न छोड़ना
रूठा है कुल ज़माना पर तू न रूठना

या रब न मालो दौलत जर चाहिए मुझे
हो जिसमें तेरी याद वो दिल चाहिए मुझे

तू दूर मुझको रखना दुनिया की चाहतों से
शैतां की पैरवी से औेर नफ्सी वसवसों से

या रब हो जिससे तू खुश वो आमाल करू मैं
खिदमत में वालीदैन की खुद को बेहाल करू मैं

या रब कभी हुकूक तेरे पामाल न हो मुझसे
हो जिससे तू नाराज वो आमाल न हो मुझसे

या रब तू कर अता अपनी कुर्बत रईस को
बंदे है नैक जो उनकी सुहबत रईस को

रईस अहमद


Sufi Ki Kalam Se

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