वर्तमान बेरोजगारी के दौर में ऊर्दू की अहमियत (गेस्ट ब्लॉगर हैदर अली अंसारी)
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साथियों जैसा की आप सभी जानते हे की वर्तमान हालात में बेरोजगारी चरम पर हे चारो तरफ होनहार टैलेंटेड बेरोजगारों की भीड़ हे यदि सरकारी चतुर्थ श्रेणी के पद पर भी भर्ती के आवेदन मांगे जाते हे तो लाखो आवेदन भरे जाते हे जिसमे आपको पोस्ट ग्रेजुएट, प्रशिक्षित नौजवानों के आवेदनो की भरमार आसानी से मिल जाएगी इसी हालात में जहां चारो तरफ पढ़े लिखे होनहार नौजवान जो बेरोजगारी के शिकार हे वो हर समय इस फिक्र में रहते हैं की केसे और क्या करें की बेरोजगारों की भीड़ में हम अपनी सरकारी नोकरी का स्वप्न पूरा कर सके
इस हालात में ऊर्दू विषय बेरोजगार युवाओं के लिए पहली पसंद बन कर उभर रहा हे ऊर्दू जुबान जो इसी मुल्क में पैदा हुईं और इसी मुल्क की तारीख और तहजीब को समेटे हुए परवान चढ़ी
इस मुल्क की सबसे प्यारी और मीठी मोहब्बत की जुबान के नाम से जिसे जाना जाता है पिछले कुछ सालों में हुकूमत की नीतियों और कुछ राजनेतिक साजिशो और सरकारी उपेक्षा के कारण इसका चलन कम हुआ लेकिन आज एक बार फ़िर यही ऊर्दू जुबान लोगो के लिए सरकारी नोकरी के लिए आसान और सबसे कम कंपीटिशन के सबब चर्चाओं में हे
राजस्थाज में वर्तमान में ऊर्दू पढ़ने और ऊर्दू के चाहने वालो और ऊर्दू के तहफ्फूज के लिए कोशिश करने वाले संगठनों की कोशिशों की बनिस्बत 800 सीटों का आवंटन होना और आवेदन मात्र 5750 आना इसकी अहमियत को जग जाहिर करता है
वैसे इस मुल्क में बसने वाले हर भारत वासी की जुबान पर ऊर्दू के लफ्ज आसानी से सुने जा सकते हे और पढ़ने और लिखने में भी ज्यादा कोई परेशानी नहीं हे यही कारण हे की जिस जुबान को कुछ सालो पहले सिर्फ़ मुसलमानो की जुबान समझा जाता था आज लगभग सभी बिरादरी ऊर्दू की तरफ रागिब हो रही हे और जब कोई भी ऊर्दू को पढ़ता हे ऊर्दू साहित्य को पढ़ता हे तो खुद बखुद इसकी मोहब्बत में मुब्तिला हो जाता है
किसी शायर ने क्या खूब लिखा है
ऊर्दू के चंद लफ्ज हे जब से जुबान पर
तहज़ीब मेहरबां हे मेरे खानदान पर
बेशक यह बात जग जाहिर हे की इस जुबान पर अधिकतर मुसलमानो का वर्चस्व रहा हे लेकिन आज के दौर में खुद वही कॉम जिसकी जुबान ऊर्दू को माना जाता है वही इसे मिटाने पर तुली हुई है आज हर पेरेंट्स और पढे लिखे नो जवान को सरकारी अध्यापक की भर्ती परीक्षाओं में ऊर्दू के पद चहिए लेकिन सरकारी स्कूलों में ऊर्दू स्टूडेंट्स की तादाद पर कोई गोर ओ फिक्र नहीं किया जाता है कुछ सालो पहले ऊर्दू स्टूडेंट्स की इक बहुत बड़ी तादाद सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले स्टूडनेट्स की हुआ करती थी लेकीन आज ऊर्दू के नामांकन के लिए सरकारी अध्यापको को काफी जद्दोजहद और संघर्ष करना पड़ता है ओर वो भी कामयाब नही हो पाता इसका प्रमुख कारण अपने बच्चो को प्राइवेट स्कूलों और मदरसों में दाखिला दिलाना हे
जहां हुकूमत लाखो करोड़ों रूपया सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चो और संसाधनों पर खर्च कर रही है, कई सरकारी योजनाएं ऐसी भी संचालित हे जिनका लाभ सिर्फ सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चो को ही मिल पाता हे और सरकारी स्कूलों से मुस्लिम बिरादरी के बच्चो की संख्या घटने का एक नुक्सान यह भी हुआ हे की दो कम्यूनिटी के बीच एक खाई पैदा हुईं और वो खाई बढ़ती जा रही हे
क्यूं की जब दो समुदाय के बच्चे साथ साथ पढ़ते हे खेलते हे एक दूसरे के कल्चर को देखते हे प्रत्यक्ष रूप से एक दूसरे की तहज़ीब और तालीम को समझते हे तो उनके बीच मोहब्बते परवान चढ़ती है लेकीन आज हालत इसके विपरित हे जब हम पढ़ते थे तो सभी जाति मजहब अलग अलग क्षेत्र संस्कृति के लोग एक जगह एक साथ बैठ कर तालीम हासिल करते थे एक दूसरे के साथ हम बढ़े हुए और स्टूडेंट्स के दौर में कायम वो दोस्ती और अपनापन के संबंध आज भी कायम हे आप मेरे द्वारा यह सब बातो का उल्लेख करने के मकसद को समझ सकते हे लेकीन आज हमने खुद अपने बच्चो को दूसरे समुदाय के बच्चो से अलग थलग रख कर इस खाई को बढ़ाया हे नतीजा आप देख ही रहे हे
आज के दौर में हर मां बाप और ऊर्दू विषय में ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट बेरोजगारों और उनके परिवार वालो को जब भी कोई वेकेंसी जारी होती है तो उसमे ऊर्दू की सीट चाहिए होती है लेकीन इस बात की कोई फिक्र नहीं करता की स्टूडेंट्स क्यों नही है जबकि मदरसो और प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले तलबाओ को शुमार किया जाए तो ऊर्दू के हजारों स्टूडेंट्स हे जो ऊर्दू पढ़ रहें होते हे और सरकार जहां एक सरकारी अध्यापक पर करोड़ों रूपया खर्च करती है उसकी जिम्मेदारी हम ढोए हुए हे नाम मात्र मानदेय में मदरसा पैरा टीचर लगाकर सरकार के मजे आ रहे हे
जिन st sc समुदायों को आरक्षण मिला हुआ है वो तो उसका लाभ उठाने के लिए अपनी नस्लों को ऊर्दू की तरफ रागिब कर रहें हे और जिनकी पहचान ऊर्दू हो वो इससे दूर होते जा रहे हे।
जो बच्चे नाम मात्र की सीटें होने के बावजूद भी सरकारी सेवा में चले जाते हे फिर हम कोशिश करते हे की वो हमारे पास रहे घर से ज्यादा दूर नोकरी के लिए उनको बाहर न जाना पड़े लेकीन जब स्कूलों में ऊर्दू पढ़ने वाले तलबा ही नही होंगे तो आपके बच्चे केसे आप के साथ रह सकते हे आपके सामने में अपने बारां जिले का उदाहरण पेश कर सकता हूं जहां ऊर्दू विषय से और नोकरी चाहने, और नोकरी करने वालो की एक बडी तादाद हे लेकीन जब रिक्त सीटों पर निगाह दोडाते है तो मुश्किल से दो तीन सीट नजर आती हे
कही न कहीं यह आज के हालात में हम सब के लिए सोचने का मुकाम हे सरकारी स्कूलों में लगातार भरे जाने वाले सभी रिक्त पदों और सभी संसाधन उपलब्ध हे और लगातार सरकारी स्कूलों ने परीक्षा परिणामों में भी बड़े बड़े प्राइवेट स्कूलों इंस्टीट्यूट को पछाड़ कर अपनी अलग पहचान बनाई है
लिहाजा इस मोजु पर हर दानिश मंद हजरात को सोचना और गोर ओ फिक्र करके इसका तब्सिरा करना चाहिए और इन हालात को खत्म करने के लिए हर मुमकिन कोशिश करनी चाहिए। ✍️✍️✍️✍️✍️
हैदर अली अंसारी
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