ज्योति नारनोलिया (गेस्ट ट्रैवल ब्लॉगर)

सिनेमा और यात्राओं का गहरा संबंध है।घर के ब्लैक एंड व्हाइट टीवी से लेकर सिल्वर स्क्रीन तक सब कुछ की क्रेज़ी रही हूं मैं और एक दौर में तो फर्स्ट डे फर्स्ट शो की भी।।
लेकिन इन सब में से सिर्फ इम्तियाज़ अली सर की फिल्मों ने प्रभावित किया है।। मैं उनके किरदारों की बेफ़िक्री, बोल्डनेस, सिंपली सिटी, और यायावरी से प्रभावित हूं। उनके किरदार बाहर से जितने मनमौजी हैं अंदर से उतने ही सेंसेटिव।।
मुझे यशराज की फिल्मों वाली हीरोइन की तरह सज संवर के रहना पसंद ही नहीं आया कभी।
हालांकि मुझे गीत और वीरा की तरह शादी करने का कोई शौक नहीं है किंतु उनकी तरह पहाड़ो पर बस जाने का ज़ी करता हैं।
उबड़ खाबड़ रास्तों पर चलना पसंद हैं।
किसी गाड़ी की बजाय ट्रक या पिक अप जैसी रस्टिक यात्रा।। पटाखा गुड्डी की तरह हाईवे पर मटर गस्ती।
ढाबे पर खाना और सड़क किनारे चाय।।

बिन सफ़र बिन मंज़िलो का
रास्ता होना चाहती हूं।
कहीं दूर किसी जंगल में
ठहरा दरिया होना चाहती हूं
दूर आसमां से गिरते,
झरने में कहीं खोना चाहती हूं।।
ख़ैर ये अलग बात बात है k जो हम होना चाहते है और जो हम है ये दोनों अलग चीज़े।।(इम्तियाज अली_लव आजकल_2)
यात्रा के दौरान मैं जब भी कोई सुंदर वस्तु, सुंदर दृश्य या दूर दूर तक फैली हुई घाटियों को देखती हूं तो सारे अंतरमन में एक पीड़ा का अनुभव होती हैं, इतनी मनमोहक और दिलकश वादियों पर भी एक अंधेरा अंदर बाहर फैलता हुआ लगता हैं, शायद तुम्हारे प्रेम से यू प्रकृति रंगीन लगती हैं और तुम्हें खो देने के ख्याल से बेरंग
उनके किरदारों की जिंदगी भी पहाड़ सी ही होती हैं।। वे पहाड़ की तरह मज़बूत होते हैं कभी न थकने वाले और चुनौतियों से न हारने वाले ।।
- – ज्योति नारनोलिया (गेस्ट ट्रैवल ब्लॉगर)

