सूफ़ी की कलम से…
क्यों ना हमेशा बाढ़ पीड़ित ही रहा जाए? प्राण खान
प्राण खान के शहर में बाढ़ आई तो उन्होंने बढ़ चढ़कर लोगों की मदद की। लोगों को रेस्क्यू किया, जरूरतमंदों को खाना भी पहुंचाया और भी जिस तरीके से मदद कर सकते थे उन्होंने की।
तीन दिन के तांडव के बाद बाढ़ अपने यथा स्थान पहुँच गई थी। बाढ़ तो चली गई लेकिन अपने पीछे कई सारे तबाही के निशान छोड़ गई।
शहर में बिजली के पोल टूटे तो बिजली की कमी से कोहराम मच गया। बिजली नहीं आई तो नलों ने भी हड़ताल कर दी क्यूंकि उन्हें भी बिजली के साथ ही पानी देने की आदत हो गई थी। लोगों के घरों में बोरिंग तो थी लेकिन वो भी बिना बिजली के बिना केवल एक गहरा गड़्डा मात्र था। हालांकि पहले वो कभी ज्यादतर हैंडपंप हुआ करते थे जिन्हें आदमियों ने बोरिंग में बदल दिया ताकि उनके कोमल हाथो को नुकसान ना पहुँचे और एक बटन दबाते ही पानी आ जाए। कुछ समय पहले तक सीमेंट की छोटी टंकियों से सयुंक्त परिवार का गूजर बसर हो जाया करता था लेकिन अभी पांच सो लिटर की टंकियां एकल परिवार में भी प्रयाप्त नहीं है। पानी के टैंकर मोहल्लों में पानी पहुँचा रहे हैं। लोग घरों से बाहर निकल कर टैंकर के पाइप से बर्तन भर रहे हैं जिसमें उन्हें किसी तरह की परेशानी नहीं उठानी पड़ रही है फिर भी वो लगातार हाई तौबा मचाये हुए हैं जबकि डेढ़ दशक पहले तक लोग नदी, कुओं से हाथो से मेहनत करके, ना सिर्फ पानी निकाल कर लाते थे बल्कि अलग अलग तरह के गीतों के साथ ऐसे पलो के साथ आंनदित भी होते थे।
एक – दो दिन, बिजली क्या गई लोग गर्मी से मरने लगे, इनवर्टर को यहां वहाँ भागकर ऊंचे दामों पर चार्ज करवाते फिर रहे हैं लेकिन हाथों से पंखे झाड़कर कुछ वक्त निकालना भी उन्हें मंजूर नहीं है। हाथ पंखों की जगह इलेक्ट्रिक चार्ज वाले पंखों की मांग जोरों पर है।
विद्यार्थियों ने बिना लाइट के पढ़ाई करने से मना कर दिया है, कहते हैं कि लाइट नहीं आ रही है, तो पढ़ाई कैसे करे? अब उन्हें कैसे समझाये की बिना बिजली के भी दुनिया में कई महापुरुष गुजरे हैं।
आधुनिक दुनिया की नए मरीज़ (सोशल मीडिया के मरीज़) कुछ करे ना करे लेकिन किसी भी जुगाड़ से अपना फोन जरूर चार्ज करते हैं, ऐसा करने से फोन चार्ज होने के साथ साथ वो खुद भी चार्ज हो जाते हैं। एक ज़माना था जब इंसान अपने आपको चार्ज करने के लिए सुबह उठते ही व्यायाम करता था लेकिन आज सुबह उठते ही सबसे पहले फोन चार्ज करता है।
आज का इंसान इतना स्वार्थी हो गया है कि बाढ़ के बाद पीड़ितों की मदद हो ना हो सबसे पहले लाइट बिजली जैसी सुविधाएं चाहिए जिससे उनकी जिंदगी में कोई रुकावट पैदा न हो, क्यूंकि बाढ़ पीड़ितों की मदद का काम तो सरकार का है , हमारा काम तो फोन चार्ज करके सरकार से उनके हितों की मांग उठाना है।
ये सब देखकर प्राण खान उर्फ जीव खान बड़े दुखी होते हैं लेकिन उन्हें एक बात की तसल्ली भी है कि लोग आज भी उतने बुरे नहीं है। अगर बाढ़ के बाद के दो तीन दिन से ज्यादा तक सुविधाए बहाल नहीं होती है तो इंसान अपने मूल स्वरुप में वापस लौट आता है और मशीनी युग पर आत्मनिर्भरता छोड़ कर अपना काम खुद करने लग जाता है, इसलिए प्राण खान दुआ करते हैं कि बाढ़ आए ना आए लेकिन बाढ़ पीड़ित क्षेत्रो जैसी सुविधाओं का अभाव बना रहे ताकि लोगों में सेवाभाव की भावना बनी रहे और प्राकृतिक जीवन से जुड़ाव बना रहे।
– नासिर शाह (सूफ़ी)
शिक्षक लेखक एंव स्वतंत्र पत्रकार 9636652786
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