सूफ़ी की क़लम से…✍🏻
“आओ चले..उल्टे क़दम, कुछ क़दम बीसवीं सदी की ओर “
भाग- 10 “शिशुओं के लिए तेल”
जब बात खाद्य तेलों की हो ही रही है तो लगे हाथ शरीर पर इस्तेमाल होने वाले तेलों की भी बात कर लेते हैं जो अमूमन पहले के लोग ,इन्ही खाद्य तेलों को अपने और बच्चों के शरीर पर मालिश करने के लिए भी इस्तेमाल करते थे लेकिन जैसे जैसे घरों से देशी तेल ग़ायब हुआ वैसे वैसे शरीर पर मालिश करने वाले तेल भी बदल गए और वर्तमान में ज्यादातर घरों में आधुनिक ख़ुशबू वाले तेलों की भरमार है । इन आधुनिक तेलों में भरपूर उत्तेजित ख़ुशबू होती है और ये काफ़ी महंगे भी होते हैं लेकिन अगर इनका मुक़ाबला पुराने देशी तेलों से करें तो यह उनके सामने बिल्कुल नहीं टिक पाते हैं ।
कई देशों के रिसर्च में कई सारे आधुनिक मालिश वाले तेल असफ़ल साबित हो चुके है जो निर्धारित स्वास्थ्य मानकों पर खरे नहीं उतरते है तो सोचो ऐसा तेल कैसे स्वास्थ्य लाभ प्रदान करेगा? उनका तो उल्टा शारीर पर नकारात्मक प्रभाव ही पड़ रहा है । आधुनिकता की चमक ने बच्चों से आने वाली प्राकृतिक गंध को छीनकर उच्च स्तर की ख़ुशबू में बदल तो दिया है लेकिन विश्लेषण किया जाए तो ज्यादातर लोगों को ये पसंद नहीं है और स्वास्थ्य लाभ के हिसाब से तो बिल्कुल भी ठीक नहीं है ऊपर से महंगे अलग है ।
ऐसे में अगर हम, कुछ क़दम पीछे चलकर हमारे बुजुर्गों के तरीक़े अपनाये तो फिर से बच्चों में प्राकृतिक गंध महसूस कर और अच्छा स्वास्थ्य लाभ भी प्रदान कर सकते हैं ।
पहले के लोग सर्दियों में सरसों और बाक़ी मौसम में नारियल,जैतून आदि देशी तेलों से बच्चों की मालिश करते थे जो उनकी मांसपेशियों में अच्छी खासी वृद्धि करती थीं साथ ही प्राकृतिक सौंदर्य प्रदान कर विभिन्न प्रकार के त्वचा रोगों से बचाव भी करते थे । बच्चों के साथ साथ बड़े ,बुजुर्ग और युवाओं में भी देशी तेल से मालिश करने का अच्छा चलन था जो आज भी है लेकिन कम ही लोगो में देखा जाता है ।ऐसे में पुरानी प्रणाली को अपनाने से कई तरह के स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर कई बीमारियों से भी बचा जा सकता है ।
मिलते है अगले भाग में
आपका सूफी