“आओ चले..उल्टे क़दम, कुछ क़दम बीसवीं सदी की ओर “  भाग- 8 “घरेलू नुस्ख़े “

Sufi Ki Kalam Se

सूफ़ी की क़लम से…✍🏻

“आओ चले..उल्टे क़दम, कुछ क़दम बीसवीं सदी की ओर “  

भाग- 8 “घरेलू नुस्ख़े

 उल्टे क़दम अभियान में आपका एक बार फिर से स्वागत है । उम्मीद करते है आपको ये सीरीज पसंद आ रही होगी । आज हम बात करेंगे घरेलू नुस्खों के बारे में, लेकिन आर्टिकल शुरू करने से पहले ये स्पष्ट कर देता हूँ की मैं कोई नीम हकीम या डॉक्टर नहीं हूँ जो किसी बीमारियों का इलाज बताऊंगा । इस अभियान का मकसद केवल इतना है कि जो हम पुरानी चीजों को छोड़ कर या भूल कर , आधुनिक तरीके अपना रहे हैं और जो आधुनिक जीवन शैली हमे रास नहीं आ रही है केवल उन्ही की को बदल कर फिर से पुरामें पैटर्न को अपनाने पर ज़ोर दिया जा रहा है जिसके साइडइफेक्ट ना के बराबर है और फायदे अनेकानेक । 

अब आते है टॉपिक पर । कुछ सालों पहले तक जब सर्दी जुकाम बुखार या छोटी मोटी चोट लगने पर घर पर ही प्राथमिक उपचार किया करते थे वह भी घरेलू नुस्खों से । जैसे सर्दी जुकाम आदि होने पर रात को विभिन्न प्रकार के मसालों के साथ काढ़ा बनाकर पिलाया जाता था, बुखार आने पर ठंडे पानी की पट्टियां की जाती थी , चोट लगने पर घर पर ही आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां लगाकर उपचार होता था । बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक,हर उम्र के लोगों के लिए घरेलू उपचार उपलब्ध होता था और जो उपचार था उसके कोई साइडइफेक्ट भी नहीं थे। पहले केवल गंभीर बीमारियों के लिए ही अस्पतालों का रुख करना पड़ता था लेकिन आजकल छोटी छोटी बीमारियों को लेकर अस्पतालों में रोज बरोज लंबी कतारे देखी जा सकती हैं । लोग आधुनिक जीवनशैली में इतने घुल मिल चुके हैं कि उन्हें पता ही नहीं की वह घर पर भी छोटी मोटी बीमारियों का इलाज अस्पताल से बेहतर करने में सक्षम हैं।

आधुनिक दवाओं के साइड इफ़ेक्ट:- हर कोई इस बात से वाक़िफ़ है कि आधुनिक दवाइयाँ,तुरंत प्रभाव से बीमारियों को ख़त्म करने में पूरी तरह सक्षम है लेकिन हर कोई को यह भी समझना ज़रूरी है कि उन दवाईयों के साइडइफ़ेक्ट भी हैं जो हमें लगातार इनका आदि भी बनाते हैं । 

डॉक्टर बदलना भी फैशन:- आजकल एक और फैशन निकल चुका हैं कि फला डॉक्टर के ट्रीटमेंट से आराम नहीं मिलता हैं तो दूसरों की सुनकर तुरंत डॉक्टर बदल दिया जाता हैं और दूसरें डॉक्टर के पास जाकर अधिक हाईडोज वाली दवाईयां लिखवा लाते है यहाँ तक की स्टरॉइड जैसी खतरनाक दवाइयां भी लोग शोक से खाने लगे है क्यूंकि आजकल समय किसी के पास नहीं है। हर कोई पलक झपकते ही ठीक होना चाहता है चाहे उसके लिए, उन्हें अपने शरीर के साथ खिलवाड़ ही क्यों न करना पड़े ।

 क्या करें क्या ना करें:-

अस्पतालों पर बढ़ती निर्भरता, अंग्रेजी दवाओं का लगातार इस्तेमाल, जल्दी ठीक होने के लालच में हाईडोज दवाओं का इस्तेमाल आदि चीजों ने हमारे स्वास्थ्य स्तर को नुकसान पहुंचाया है ऐसे में अगर हम चाहे तो काफ़ी हद तक इस पर नियंत्रण पा सकते हैं । हमें हमारे घर के बुजुर्गों से छोटी मोटी बीमारियों के घरेलू नुस्खें सीखने चाहिए और उनका इस्तेमाल करते हुए घर पर ही प्राथमिक उपचार करना चाहिए फिर भी एक दो दिन में ठीक ना हो तो अस्पताल जाकर इलाज करवाना चाहिए ।

दूसरी बात यह है कि इलाज के लिए जल्दबाजी न करें अगर किसी डॉक्टर की दवाओं से तुरंत आराम ना मिले तो दो से चार दिन इंतजार करें क्यूंकि एक या दो दिन में ही आराम नहीं मिलने पर डॉक्टर बदल लिया तो अगला डॉक्टर , हाईडोज दवाओं के साथ इलाज शुरू कर सकता है जो जल्दी उपचार तो देगा लेकिन शरीर को उसका आदि भी बना सकता है,उसके बाद छोटे मोटे उपचार से शरीर पर असर होने कि संभावना भी खत्म होने लगती हैं। इसलिए कोशिश करें की पहले के लोगो की तरह ओषधीय पौधों की जानकारी हो, घर में उनकी उपलब्धता हो और जितना संभव हो उन्ही से आयुर्वैदिक दवा बनाने और उपयोग करने का प्रयास करें ।

मिलते हैं अगले भाग में

आपका सूफी 

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8 thoughts on ““आओ चले..उल्टे क़दम, कुछ क़दम बीसवीं सदी की ओर “  भाग- 8 “घरेलू नुस्ख़े “

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