बोर्ड परीक्षाओं का अस्तित्व खतरे में या विद्यार्थियों का भविष्य, या दोनों?
कोई ज़माना था जब राजस्थान में बोर्ड परीक्षा की इतनी अहमियत होती थी कि अगर कोई इन्हें उत्तीर्ण कर ले तो उसके कैरियर सम्बन्धी घोषणाएं आसानी से की जा सकती थी। बच्चों में बोर्ड परीक्षा का ऐसा खौफ रहता था कि वह रात दिन इसकी तैयारी में जुटा रहता था और अभिभावक भी उनका पूरा सहयोग करते थे। जब परिणाम का दिन आता तो हर गांव, हर शहर में एक अलग ही उत्साह नजर आता। प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होने वाले खुशी से फूले नहीं समाते थे। उनको लेकर तरह तरह की भविष्यवाणियां की जाने लगती। द्वित्तीय श्रेणी से उत्तीर्ण होने वाले अभ्यर्थियों को भी अच्छा खासा सम्मान मिलता था और आगे थोड़ी और मेहनत करने की सलाह दी जाती थी तो वही तृतीय श्रेणी से पास होने वाले अभ्यर्थियों की संख्या भी अत्यधिक होती थी। उन्हें तृतीय श्रेणी से पास होने का पछतावा तो होता था लेकिन बोर्ड परीक्षा उत्तीर्ण करने की प्रसन्न्ता भी महसूस होती थी। वही एक वर्ग पूरक परीक्षा (सप्लिमेंट्री) वाले अभ्यर्थियों भी होता था जिन्हें एक या दो विषयों में अनुत्तीर्ण होने की वजह से दुबारा उस विषय की परीक्षा देनी पड़ती थी लेकिन उनके चेहरे पर भी बाकी विषयों में उत्तीर्ण होने की खुशी आसानी से देखी जा सकती थी। कई संख्या में ऐसे विद्यार्थी भी होते थे जिन्हें पूरक परीक्षा तो नहीं देनी पड़ती थी लेकिन कुछ अंकों की ग्रेस देकर आगे बढ़ा दिया जाता था। इस तरह के कई रोचक दृश्य हर साल देखने को मिलते थे।
इसके बाद समय बदला तो ऐसा बदला की पूरा सिस्टम ही बदल गया। अब श्रेणी का स्थान प्रतिशत ने ले लिया। वो भी काफी ज्यादा मात्रा में। एक समय वो था जब बोर्ड परीक्षा में पूरे प्रदेश में प्रथम श्रेणी उत्तीर्ण अभ्यर्थियों की संख्या काफी सीमित होती थी लेकिन धीरे धीरे ये ढर्रा ऐसा बदला की द्वित्तीय और तृतीय श्रेणी वाले तो दूर प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होने वालों का भी सम्मान उतना नहीं रहा जितना उच्चतम प्रतिशत वालों का। कुछ सालो पहले तक तो साठ से अस्सी प्रतिशत बनना काफी सामान्य था फिर अस्सी से नब्बे बनना आम हुआ और फिर जैसे जैसे समय गुजरता जा रहा है वैसे वैसे यह प्रतिशत भी बढ़ता जा रहा है।
अब अगर इस साल (2021) की बोर्ड परीक्षा के परिणाम को देखे तो सारे रिकॉर्ड ध्वस्त होते नजर आए। नब्बे प्रतिशत से अधिक वाले विद्यार्थियों की संख्या इतनी ज्यादा है जितनी आजादी के बाद कभी नहीं देखी गई। तो क्या इस तरह परिणामों पर सार्थक चर्चा और समीक्षा नहीं होनी चाहिए?
विचारणीय पहलू यह है कि बरसों से देश विदेश में विख्यात बोर्ड परीक्षा परिणाम किस दिशा में जा रहा है? क्या विद्यार्थी या इनको पढ़ाने वाले इतने योग्य हो गए हैं या हमारा सिस्टम इतना उन्नत हो गया?
वर्तमान में जिस तरह से मूल्यांकन कर परिणाम दिए जा रहे क्या वह विद्यार्थियों के हित में है? इस प्रश्न पर ना सिर्फ अभिभावकों को सोचना होगा बल्कि सरकारों को भी यह सोचना होगा। बोर्ड परीक्षाएं विद्यार्थियों की नींव होती है अगर यही कमजोर रही तो फिर विद्यार्थियों का भविष्य कैसे उज्जवल हो सकता है। परीक्षा कर्मोन्नति, किसी महामारी का एक विकल्प तो हो सकता है लेकिन यह विकल्प अगर इतनी उच्च प्रतिशत से साथ लागू किया जायेगा तो आने वाले समय में विद्यार्थियों का मूल्यांकन किस तरह किया जाएगा?
अगर उनका मूल्यांकन इनसे कम प्रतिशत के साथ किया गया तो यह विद्यार्थी प्रतिस्पर्धा में काफी पीछे रह जाएंगे और अगर उनका मूल्यांकन भी इसी तरह किया गया तो बोर्ड परीक्षाओं की विश्वसनीयता पर खतरा मंडराने वाला है। ऐसे में सरकारों और संबंधित विभागों को, बोर्ड परीक्षा एंव विद्यार्थियों के हितों को ध्यान में रखते हुए इस तरह के परिणामों पर मंथन करना चाहिए।
नासिर शाह (सूफ़ी)
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