भाग- 20 “अपना ब्रश कैसा हो” “आओ चले..उल्टे क़दम, कुछ क़दम बीसवीं सदी की ओर “

Sufi Ki Kalam Se

सूफ़ी की क़लम से…✍🏻

“आओ चले..उल्टे क़दम, कुछ क़दम बीसवीं सदी की ओर “  

भाग- 20 “अपना ब्रश कैसा हो”

आज के दौर में शायद ही कोई ऐसा हो जो ब्रश उपलब्ध न होने पर दाँतो को साफ़ कर सके । चाहे पाँच से दस रुपये वाला बेहद घटिया क्वालिटी का ब्रश ही ख़रीदना पड़े लेकिन दांतों को साफ़ करने के लिए ब्रश पर ही निर्भर रहना पड़ता है । आज के दौर का इंसान,  लगभग ये भूल चुका है हाथों की उँगलियों से और पेड़ों की दातून से भी दाँत साफ़ किए जा सकते हैं । दूसरी बात यह है कि दाँत साफ़ करने के लिए भी किसी भी कंपनी की हो लेकिन ट्यूब ही होनी चाहिये । बात ये नहीं है कि ब्रश और ट्यूब का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, बात यह है कि दाँत हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है जिसके ख़राब होने की स्थिति में हम दुनिया की तमाम चीज़ों के स्वाद का मज़ा खो सकते हैं इसलिए दांतों का ख्याल रखना, हमारी प्राथमिकता होना चाहिए । 

दाँतो के मामलों में हमें आधुनिक संसाधनों के साथ ही अपने पुराने दौर के लोगों के तौर तरीको को भी देखना चाहिए जिनके पास महंगे ब्रश और ट्यूब नहीं होने के बावजूद भी बुढ़ापे तक उनके दाँत ना सिर्फ़ सुरक्षित रहते थे बल्कि सुंदर और चमकीले होते थे ।इसके पीछे के कारणों का विश्लेषण किया जाए तो एक चीज़ का सबसे महत्वपूर्ण योगदान रहा है और वह है विभिन्न प्रकार के पेड़ों की दातून। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि हमारे बुजुर्गों का यह दातून करने वाला फार्मूला दाँतों के लिए सबसे उपयुक्त माना गया है । चाहे दाँत साफ़ करना हो या दांतों से जुड़ी कोई बीमारी हो, दातून से सारी समस्याएँ ख़त्म हो सकती हैं । नीम,बबूल, जैतून जैसे पेड़ों की दातून इतनी गुणकारी होती है कि हम कल्पना भी नहीं कर सकते , इनके कई शोध प्रकाशित भी हो चुके हैं । इसके अलावा कई तरह की जड़ी बूटियों को सुखाकर और बारीक पीसकर उनका मंजन बनाया जाता था जिन्हें अपने हाथों की उँगलियों से दाँतों पर रगड़कर दाँत साफ़ किए जाते थे । ऐसा करने से भी दाँतों की सफ़ाई के साथ ही दाँतों और मसूढ़ो की कई समस्याओं से भी निजात मिलती हैं ।

अब आज के दौर की बात करें तो हम देखते हैं कि ज्यादातर युवा तो मंजन और दातून को जानते तक नहीं हैं । वह तो सिर्फ हार्ड प्लास्टिक वाले ब्रश और प्रतिस्पर्धात्मक कंपनियों की ठीकठाक पेस्ट वाली ट्यूब का इस्तेमाल करते हुए समझते हैं कि दाँतों के लिए यही प्रयाप्त हैं जबकि आपको सुनकर आश्चर्य होगा की आधुनिक सस्ते ब्रश हमारे दाँतों को साफ़ तो कर सकते हैं लेकिन उन्हें नुक़सान भी बहुत पहुँचाते है, साथ ही आधुनिक पेस्ट भी स्वाद और सुगंध बढ़ाने के चक्कर में कई हानिकारक पदार्थों का उपयोग करते हैं जो स्वास्थ्य की दृष्टि से पूर्णतया सही नहीं कहे जा सकते हैं । कहने का तात्पर्य सिर्फ़ इतना है कि अगर आपको आधुनिक ब्रश और पेस्ट का इस्तेमाल करना हो तो अच्छी कंपनी वाले महँगे ब्रश और पेस्ट का इस्तेमाल करें जिससे आपके दाँतो की सेहत ना बिगड़े, और अगर आप चाहते हो कि दाँतों और मसूढ़ों का सम्पूर्ण सरंक्षण हो वो भी बिना पैसों के तो आओ कुछ क़दम उल्टे चलते हुए अपने बुजुर्गों के तरीक़े अपनाये और बिना देर किये अपने आसपास पेड़ ढूँढे और रोज़ाना दातून करें । ये दातून हमेशा से पेड़ों पर उपलब्ध होती है जिन्हें हम निःशुल्क प्राप्त कर सकते हैं लेकिन लोगों को फ्री वाली चीजें कहाँ पसंद होती है, वह तो उन्ही दातुनों को ऑनलाइन या ऑफलाइन ज़्यादा क़ीमत देकर ख़रीदते हैं वह भी काफ़ी दिन पुरानी । आपको सलाह दी जाती है कि ज्यादातर दातुन हमारे आसपास निःशुल्क मिल जाती हैं केवल जैतून और दूसरीं तरह की दातून चाहिए हो तब ही इन्वेस्ट करें अन्यथा नहीं । नीम की दातून सबसे आसानी से मिलने वाली और बहुत ज़्यादा गुणकारी होती है और वह भी निःशुल्क । 

मिलते हैं अगले भाग में 

आपका सूफ़ी 

9636652786


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7 thoughts on “  भाग- 20 “अपना ब्रश कैसा हो” “आओ चले..उल्टे क़दम, कुछ क़दम बीसवीं सदी की ओर “

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