नयी कलम ब्लॉग में पढ़िए गागरोन दुर्ग के बारे में उपयोगी जानकारी (झालावाड़)

Sufi Ki Kalam Se

सुल्तान की क़लम से………
इतिहास +नगरी = गागरोन दुर्ग,
झालावाड़
● राजस्थान में अंग्रेजों द्वारा बनाई गई आख़री रियासत|
हिंदुस्तान के अन्दर कई अनगिनत क्षेत्र है जो अपनी एक छिपी हुई पहचान रखते है, कई वन क्षेत्रों के लिए प्रसिद्ध है तो कई दुर्गों/महलों के लिए प्रसिद्ध है, इसी तर्ज पर आज हम राजस्थान में अंग्रेजों द्वारा बनाई गई आख़री रियासत – झालावाड़ जिला, जिसे ऐतिहासिक नगरी के नाम से भी जाना – जाता है, जिसकी राजधानी (प्राचीन काल में) झालरापाटन रही |
राजस्थान की ऐतिहासिक नगरी जो घाटी क्षेत्र के नाम से सु प्रसिद्ध है, जिसे प्राचीन काल में ब्रिजनगर के नाम से याद किया जाता था,इस शहर की स्थापना , झाला जालिम सिंह ने (1791) की जो उस समय कोटा राज्य के दीवान थे ,जिसे उस समय चाओंनी उम्मेदपुरा कहा जाता था जो एक घने जंगलों और वन्य जीवों से गिरी हुई थी, झाला जालिम सिंह ने इस जगह के महत्व को पहचाना और इसे एक सैन्य छावनी और बस्ती के रूप में विकसित करना शुरू कर दिया ताकि इस जगह का इस्तिमाल मराठा पर हमला करने और रोकने के लिए कर सके, कोटा राज्य तक पहुँचानेे से पहले चाओनी उम्मेदपुरा को 1803-04 ई. के आस-पास एक छावनी और बस्ती के रूप में विकसित किया और इसी क्षेत्र का दौरा कर्नल जेम्स टॉड ने दिसम्बर 1821 में किया |
1838 ई. को अंग्रेज शासकों ने झालावाड़ राज्य को कोटा राज्य सेअलग कर दिया और झाला ज़ालिम सिंह के पोते झाला मदन को दे दिया , यही लम्बे समय तक झालरापाटन में रहे, इसी तरह एक के बाद एक शासक बदलते रहे,इसी के साथ ही आज हम इसी जिले के दुर्ग गागरोन दुर्ग की ही बात कर लेते है, जो उत्तरी भारत का एक मात्र जल दुर्ग है जो आहु और कालीसिंध नदी के संगम के ऊपर मुकुन्दरा की नुकीली पहाड़ी पर बना हुआ है,
यह एक मात्र ऐसा दुर्ग है जो अरावली की श्रेणी में नहीं आता, अगर हम भारत के संदर्भ में बात करे तो यह भारत का एक मात्र वह किला जिसकी नीवं नहीं है बल्कि एक नुकीली चट्टान पर अवस्तिथ है, यह किला अपने गौरमयी इतिहास के लिए भी जाना जाता है, आज से कई साल पहले यहाँ के शासक अचलदास खिंची, मालवा के शासक होशंगशाह से हार गए थे तो यहाँ की राजपूत महिलाओं ने खुद को दुश्मनों से बचाने के लिए जोहर किया, इतिहासकार के अनुसार इस दुर्ग का निर्माण कार्य – 7 वी सदी से चौदहवी सदी तक चला, इस किले का निर्माण – 1195 ई./12 वी सदी में राजा बिजलदेव चौहान ने करवाया, इसका पुनः निर्माण- देव सिंह/धारू ने करवाया |
इस किले का नाम डोडगढ़/धुलरगढ़ (डोड परमार राजपूत द्वारा दिया गया) भी है,पौराणिक मान्यता के अनुसार इसका सम्बन्ध भगवान कृष्ण के पुरोहित गर्गाचारी से था जिनका यह निवास स्थान था इतिहासकार प्राचीन ग्रंथों में उल्लेखित गर्गराट पुर के रूप में इसकी पहचान करते है, गागरोण-नेणसी की ख्यात के अनुसार राव मुकुंद सिंह ने दुर्ग में अनेक महल बनवाए| इतिहासकार के मुताबिक़ गागरोन किला देश के सामरिक व रणनीतिक रूप से इतना महत्व था , कि यह दिल्ली से मालवा और गुज़रात से मेवाड़ के बीच एक मात्र ऐसा किला था, कि इसे जीते बिना पूरे मध्य व पश्चिम भारत पर कब्ज़ा करना काफ़ी मुश्किल था इसलिए इसे गुज़रात, मेवाड़, मालवा और हाड़ौती का केंद्र बिन्दु माना जाता है,इसकी इसी विशेषता के चलते 23 जून 2013 को यूनेस्को ने इसे वर्ल्ड हेरीटेज की सूची में शामिल किया |
दुर्ग के अंदर प्रवेश – इस दुर्ग का सबसे पहला दरवाजा जो पहाड़ी की तरफ़ खुलता है जिसे बुलन्द दरवाजा के नाम से जाना जाता है जिसे औरंगजेब ने बनवायाऔर दूसरा गेट नदी की तरफ़ खुलता है, यह राजस्थान का वह दुर्ग है जहाँ पर 100 वर्ष पुराना पंचाग रखा गया है, जेतसिंह के शासन काल में मिठ्ठे साहब गागरोन तशरीफ़ लाए और इसी दुर्ग में सूफ़ी संत हमीमुद्दीन चिश्ती (ख़ुरासान) की दरगाह है जिसकी दरगाह का निर्माण औरंगजेब ने करवाया,यह दुर्ग 14 युद्वो का साक्षी व दो साके के लिए काफ़ी चर्चा में रहा है, जिसमे पहला साका 1423 व दूसरा साका 1444ई. में मांडू के सुल्तान महमूद ख़िलजी ने जीतकर गागरोन का नाम बदलकर मुस्तफ़ाबाद कर दिया, इसी दुर्ग के अंदर संत नरेश पीपा जी की छत्री भी स्थित है, और जैसे कि – गीध तराई नामक पहाड़ी, मधुसुधन मन्दिर, दुर्ग के विशालतम परकोटा (3)जिसे जालिम कोट कहा जाता है, कोटा रियासती सिक्कें डालने की टकसाल, दीवाने आम, दीवाने ख़ास, जनाना महल, शत्रुओं पर पत्थरों की वर्षा करने वाला यंत्र आज भी विद्यमान है, इस दुर्ग के अंदर वेलिकिशन रुक्मणि रिख्यात नामक ग्रन्थ की रचना (डिंगल भाषा में) की जो पृथ्वी राज राठौर की है |
अन्य दुर्गों में – मनोहरथाना दुर्ग
नदी – परवन व कालीखोह नदी के संगम पर |
नवलखा दुर्ग –
बड़ी सांदड़ी दुर्ग – आदि
Note- इसी के थोड़ी दूर समीप झालावाड़ का मुख्य शहर जिसे वर्तमान में पाटन या झालरापाटन के नाम से याद किया जाता है इसी नाम की रियासत के लिए यह व्यापार का केंद्र भी रह चुका, यहाँ पर बना एक मंदिर बड़ा ही मशहूर है, सूर्य मंदिर जिस की तुलना उड़ीसा राज्य में बने कोणार्क का सूर्य मंदिर से की जाती है, यह मंदिर कच्छपतघाट शैली का अनुपम उदाहरण है, झालरापाटन शहर के हृदय स्थल पर स्थित यह विशालतम मंदिर दसवीं शताब्दी का माना जाता है, इस मन्दिर के बारे में इतिहासकार कहते है, की इस मंदिर के अंदर जो प्रतिमा बनी हुई है वह ऐसा लगता है, कि मानो पैरों में जूते पहने हुई है जो देश में कहीं नहीं है |
हाड़ौती में 8 वी सदी /9 वी सदी की बौद्धकालीन गुफाएं भी खास है, कौलवी , डग /झालावाड़ जिले की गुफ़ा जो कि प्राचीन काल में झालावाड़ जिला भी कोटा जिले में आया करता था, यहाँ मौर्यकालीन मंदिरों के अवशेष माने जाते है |

शाहरूख (सुल्तान)


Sufi Ki Kalam Se
error: Content is protected !!