सूफ़ी की कलम से…
दो युवा शिक्षकों के संकल्प ने बदली सरकारी विद्यालय की सूरत
कोरोना काल का वैसे तो ज्यादतर इंसानो ने काम पूरा नहीं हो पाने का रोना रोया था लेकिन इसी कोरोना काल के खाली अवसर को, कई लोगों ने एतिहासिक रूप देकर कई उपयोगी कार्य भी संपन्न किए है। ऐसी ही एक मिसाल कोटा जिले में, दुर्जनपुरा विधालय के शिक्षकों ने भी पेश की। खैराबाद ब्लॉक में स्थित राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय दुर्जनपुरा के नवनियुक्त प्रधानाध्यापक राकेश कुमार एंव इसी विधालय के पूर्व शिक्षक नीरज महाराजा ने मिलकर इस विधालय की काया पलट कर दी जो देखते ही बनती है। दोनों शिक्षकों के दृढ़ संकल्प एंव समर्पण ने विधालय की सुन्दरता में चार चांद लगा दिए, जिससे यह विधालय अन्य विधालयों के मुकाबले अपनी अलग चमक बनाए हुए हैं।
प्रधानाध्यापक राकेश कुमार ने स्वयं विधालय की समय सीमा के अलावा गांव की युवा शक्ति ,ओर युवा ऊर्जा के ध्वजवाहक बनकर ,उचित तरीके से उनसे सहयोग प्राप्त किया। कुमार ने बेहतर कार्यप्रणाली अपनाकर ग्रामीण युवाओ को रात्रि श्रमदान करने के लिए प्रेरित किया और उनके साथ स्वयं कंधे से कंधे मिलाकर विधालय निमार्ण में अपना महत्तवपूर्ण योगदान दिया।
इतना ही नहीं उन्होंने आर्थिक रूप से भी काफी मदद की और ना सिर्फ आर्थिक सहयोग दिया बल्कि अपनी मेहनत और लगन से कई ग्रामीणों को भामाशाह बनाकर उनसे आर्थिक सहयोग भी प्राप्त किया। परिणामस्वरूप उस सहयोग राशी से विधालय मे फर्श (कोटा स्टोन), भव्य प्रवेश द्वार, पेयजल व्यवस्था, पौधारोपण, विद्यालय गौरवपथ, नवीन प्रधानाध्यापक कक्ष आदि कई आवश्यक निर्माण संपन्न कराए गए। इसी के साथ जर्जर बाउंड्रीवाल की मरम्मत एंव सम्पूर्ण विधालय की रंगाई पुताई कर विधालय को एक आकर्षक स्वरुप प्रदान किया।
अकेले ही चला था जानिब ए मंजिल मगर,
लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया। (मजरूह सुल्तानपुरी)
इस एतिहासिक यात्रा को सिर्फ दो शिक्षकों (नीरज महाराजा, राकेश कुमार) ने प्रारम्भ किया था लेकिन धीरे धीरे गांव के कई युवा और भामाशाह इस मिशन से जुड़ते गए और देखते ही देखते एक बेहतरीन टीम बन गयी जो विद्यालय विकास के लिए तत्पर है। रात्रिकालीन किर्याकलापों के लिए प्रकाश व्यवस्था भी की गयी जिसमें गांव के युवा रात्रिकालीन मैच खेलते हैं एंव विभिन्न प्रकार की गतिविधियों का आयोजन करवाते हैं। दोनो मे से एक शिक्षक नीरज महाराजा का पदस्थापन, कुछ माह पूर्व सागोंद ब्लॉक के अँग्रेजी माध्यम के महात्मा गांधी विद्यालय में हो गया था लेकिन फिर भी उन्होंने, वही से अपने पूर्व विधालय की मॉनीटरिंग कर अपने सपने को साकार करने के लिए पूर्ण रूप से प्रयत्नशील रहे।
– नासिर शाह (सूफ़ी)
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