ओबीसी, एससी, एसटी और अल्पसंख्यक वोटर को क्यों नजरअंदाज कर रहे हैं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ?
जयपुर (थार न्यूज़-इकरा पत्रिका)। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खुद ओबीसी समुदाय से हैं और ओबीसी, एससी, एसटी व अल्पसंख्यक वोटर कांग्रेस का प्रमुख वोट है तथा विधानसभा चुनाव 2018 का बारीकी व ईमानदारी से अध्ययन किया जाए तो मालूम चलेगा कि कांग्रेस की सभी 106 सीटें इसी वोटर ने जीतवाई हैं। इसके बावजूद मुख्यमंत्री गहलोत को इस वोटर की बजाए ईडब्ल्यूएस वोटर की ज्यादा फिक्र हो रही है।
इसकी वजह साफ है कि चार विधानसभा सीटों पर उप चुनाव हैं, जिनमें से तीन पर 17 अप्रैल को होंगे तथा गहलोत की रणनीति यह है कि ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर) वर्ग के गुणगान कर या उन्हें अतिरिक्त सुविधाएं देकर उनके वोट ले लिए जाएं, ताकि उप चुनावों में आसानी से जीत हासिल हो सके। ईडब्ल्यूएस कैटेगरी में प्रमुख रूप से ब्राह्मण, वैश्य, राजपूत आदि समुदाय आते हैं। मुख्यमंत्री गहलोत ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण के लोगों को 7 अप्रैल को मन्त्रिमण्डल बैठक कर सरकारी नौकरी की उम्र सीमा में छूट देने की घोषणा की। इसके तहत ईडब्ल्यूएस वर्ग के युवाओं को सरकारी नौकरियों में एससी, एसटी और ओबीसी की तर्ज पर अधिकतम आयु सीमा में 5 से 10 साल की छूट देने की घोषणा की है।
विचित्र बात यह भी है कि ईडब्ल्यूएस युवाओं को इस सुविधा का लाभ देने के लिए सरकार ने प्रक्रियाधीन भर्तियों में कई परीक्षाओं की तारीखों को आगे बढ़ाया है। रीट परीक्षा को 25 अप्रैल से आगे बढ़ाकर 20 जून को कराने का फैसला किया है। रीट में ईडब्ल्यूएस वर्ग के युवाओं को फिर से आवेदन करने का मौका दिया जाएगा। इसी तरह लेक्चरर भर्ती, पटवारी भर्ती परीक्षा भी आगे बढाई गई हैं।
साफ बात यह है कि मुख्यमंत्री गहलोत ने ईडब्ल्यूएस सुविधाओं के नाम पर ब्राह्मण, वैश्य और राजपूत वोटों को लुभाने का जो सन्देश दिया है, वैसा सन्देश उन्होंने ओबीसी, एससी, एसटी और अल्पसंख्यक वोटों के लिए नहीं दिया है, जबकि राजस्थान में कांग्रेस को जिन्दा रखने और गहलोत को तीसरी बार मुख्यमंत्री बनाने वाले यही वर्ग हैं। अगर आप मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की विधानसभा सीट सरदारपुरा, कैबिनेट मन्त्री शान्ति धारीवाल की सीट कोटा, मुख्य सचेतक महेश जोशी की सीट हवामहल आदि का अध्ययन करेंगे तो मालूम चलेगा कि जिन बूथों पर ईडब्ल्यूएस वोटर का बाहुल्य है, वहाँ अधिकतर पर कांग्रेस की बुरी तरह से हार हुई है।
खैर, यह सत्ताधीश की मर्जी होती है कि वो किससे बात करना पसंद करे और किसको नवाजे। लेकिन राजतंत्र में तो ऐसा चल सकता, पर लोकतंत्र में नहीं। राजस्थान की एक भी ऐसी विधानसभा सीट नहीं है जहाँ ओबीसी, एससी, एसटी और अल्पसंख्यक वोटर का बाहुल्य नहीं हो। सच्चाई तो यह है कि हर विधानसभा सीट पर 85 प्रतिशत से अधिक इन्हीं वर्गों का वोट है। इसके बावजूद मुख्यमंत्री गहलोत द्वारा इन वर्गों को नजरअंदाज करना एक तरह से अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने और कांग्रेस की हमेशा के लिए कब्र खोदने जैसा है। कांग्रेसी मुख्यमन्त्रियों की ऐसी नीतियों ने तमिलनाडु, बंगाल, बिहार, यूपी जैसे राज्यों में कांग्रेस की कब्र खोदी, जहाँ दशकों पहले कांग्रेस का खाता बन्द हो गया था। सवाल यह है कि क्या गहलोत भी राजस्थान में वैसा ही करना चाहते हैं ? गहलोत की नीतियों और आरक्षित वर्गों को नजरअंदाज करने से तो ऐसा ही लग रहा है कि वे कांग्रेस के “बहादुर शाह जफर” बनना चाहते हैं। यानी राजस्थान में “कांग्रेस के आखरी मुख्यमंत्री।”
ओबीसी, एससी, एसटी और अल्पसंख्यकों से सम्बंधित कई मुद्दे ऐसे हैं, जिन पर गहलोत शुरू से ही खामोश हैं। वे जाति आधारित जनगणना, आबादी के अनुपात में आरक्षण बढाना, जस्टिस मिश्रा कमिशन की सिफारिशों के तहत अल्पसंख्यकों को आरक्षण देना आदि मुद्दों पर अपना मुंह खोलना भी उचित नहीं समझते। क्या ईडब्ल्यूएस को खुश करने के साथ गहलोत को ओबीसी, एससी, एसटी और अल्पसंख्यकों को भी खुश नहीं करना चाहिए था ? यकीनन करना चाहिए था, लेकिन वे ऐसा नहीं करना चाहते, क्योंकि वे जिस पार्टी (कांग्रेस) के नाम पर मुख्यमंत्री बने हुए हैं, उस पार्टी और भाजपा की नीतियां समान हैं। दोनों ही पार्टियों की नीतियां आरक्षित वर्ग के खिलाफ़ हैं।
ईडब्ल्यूएस को खुश करने के साथ गहलोत को यह भी करना चाहिए था कि वे विधानसभा का विशेष सत्र बुलाते और पांच प्रस्ताव पास कर केन्द्र सरकार को भेजते। पहला जाति आधारित जनगणना करवाने की मांग, दूसरा आबादी के अनुपात में ओबीसी, एससी व एसटी का आरक्षण बढाने की मांग, तीसरा ओबीसी को भी विधानसभा व लोकसभा सीटों में आरक्षण दिलवाने की मांग, चौथा जस्टिस मिश्रा कमिशन की सिफारिशों के तहत अल्पसंख्यक आरक्षण दिलवाने की मांग, पांचवां निजी क्षेत्र में आरक्षण देने की मांग। यह पांच प्रस्ताव पास कर वे केन्द्र को भेजते, तो लगता कि ओबीसी वर्ग के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के दिल में आरक्षित वर्गों के लिए भी जगह है।
सियासी जानकारों का मानना है कि गहलोत चाहे कितना भी ईडब्ल्यूएस के नाम पर जिन समुदायों को खुश करना चाहें करें, लेकिन इन समुदायों का जो मामूली वोट मिलता है, वही मिलेगा। क्योंकि इन समुदायों का अधिकतर वोट भाजपा को जाता है और वहीं जाएगा, इसका परिणाम मतगणना के दिन मालूम हो जाएगा। गहलोत की इस नजरअंदाज करने की नीतियों से ओबीसी, एससी, एसटी और अल्पसंख्यक समुदायों में कड़ी नाराज़गी भी है तथा इन समुदायों से सम्बंधित पंच पटेलों का मानना है कि इस नाइन्साफी के खिलाफ़ कांग्रेस के ओबीसी, एससी, एसटी और अल्पसंख्यक नेताओं को अपना मुंह खोलना चाहिए।
एक और नाइन्साफी भी है, जो गहलोत ने आरक्षित वर्ग ख़ासकर ओबीसी के साथ की है। जिन तीन सीटों पर उप चुनाव हो रहे हैं, उनमें सुजानगढ तो एससी के लिए सुरक्षित है। बाकी सहाड़ा और राजसमन्द में कांग्रेस ने ईडब्ल्यूएस वर्ग से सम्बंधित उम्मीदवार उतारे हैं। यानी इन दोनों जगह टिकट देने में भी ओबीसी के साथ नाइन्साफी बरती गई है। क्योंकि दोनों सीट ओबीसी बाहुल्य हैं। यह सवाल गहलोत पर इसलिए भी खड़ा हो रहा है, क्योंकि टिकट वितरण उन्हीं की सिफारिश से या यह कहें कि उन्हीं के कर कमलों से फाइनल हुए हैं। (08-04-2021)
-@ एम फारूक़ ख़ान सम्पादक इकरा पत्रिका
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