‘हालातों को संभाल लो’
वक़्त – ए – हालात मुश्किल है
ज़रा जज्बातों को संभाल लो,
कुछ दिन घर पर रुककर ही सही
तुम बिगड़े हुए हालातों को संभाल लो ।
इस वबा के दौर में,
कई अपनों को खोया है,
किसी की नींद उजड़ी है,
किसी का चैन खोया है,
कोई महामारी से हारा है, तो कोई भूख से रोया है,
लोग मरते हैं यहां परायों के लिए,
तुम बस कुछ दिन अपनों को संभाल लो
वक़्त- ए – हालात मुश्किल हैं
ज़रा जज्बातों को संभाल लो।
लड़ रहे हम सब यहां,
अंदर से भी , बाहर से भी,
मातम है पसरा हुआ,
इस घर में भी,उस घर में भी,
दूर है इंसा यहां
खुद से भी, गैरों से भी
रोककर पैरों को घर पर,
जरा अपनी धड़कनों को संभाल लो।
वक़्त- ए – हालात मुश्किल है
ज़रा जज्बातों को संभाल लो।
सुनसान सड़के, वीरान घर,
देखा न था पहले कभी
हवा भी दाम मांगेगी,
सोचा न था पहले कभी
टूटे हुए शीशे से है,
सारे शहर बिखरे हुए
मरहम लगा के घावों में,
तुम अपने जख्मों को संभाल लो।
वक़्त- ए – हालात मुश्किल है
ज़रा जज्बातों को संभाल लो।
इस धरती के भगवान (डॉक्टर) भी,
बेचैन होंगे इस कदर,
कोशिशें हर एक उनकी,
नाकाम होंगी इस कदर
सोचा न था पहले कभी,
हम बरबाद होंगे इस कदर,
गर बचना हैं इन बर्बादियों से,
तो अपनी आबादियों को संभाल लो।
वक़्त- ए – हालात मुश्किल है
ज़रा जज्बातों को संभाल लो।
– @गेस्ट पॉएट अंतिमा मीणा
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