सोफा सेट (हिन्दी कहानी)
गेस्ट राइटर @अकमल नईम सिद्दीकी जोधपुर
रात के तक़रीबन दस बजे होंगे । कविता अपनी सहेली अनुपमा के यहाँ से दावत के बाद घर लौट रही थी । कार राजेश ड्राइव कर रहा था । रास्ते में कविता ने राजेश से मुख़ातिब होते हुए कहा “राजेश तुमने अनुपमा का डाइंग रूम देखा ? और तुमने वो सोफा सेट और सेंटर टेबल देखी ! देट वाज़ सो अमेजिंग ! हैं न ?”
“हाँ कविता वाक़ई देट वाज़ वैरी ब्यूटीफुल !” राजेश ने उसकी तरफ़ देखे बिना जवाब दिया ।
“तुम्हें पता है मैं ने अनुपमा की फैमिली को इस सन्डे लंच पर इनवाईट किया है ?” कविता ने राजेश की जानिब देखते हुए कहा ।
राजेश ने कविता कि तरफ़ एक पल के लिए देखा और कहा । “ओह ! देट्स ग्रेट !”
“लेकिन राजेश हम अपने घर को घर कब बनायेंगे डार्लिंग ?” कविता ने प्यार से अपनी कोहनी राजेश के कंधे पर टिकाते हुए शिकायती लहजे में कहा और राजेश के जवाब का इंतज़ार करने लगी ।
राजेश का ध्यान ड्राइविंग पर था । उसने कविता की तरफ़ देखे बगैर बड़ी मासूमियत से पूछा “क्या मतलब ?”
“अरे बाबा अपना घर देखा है ? और आज अनुपमा का घर देखा ? घर इसको कहते हैं माई लव” कविता ने अपने दूसरे हाथ से राजेश के गालों पर एक हलकी सी थपकी देते हुए प्यार से कहा ।
“देखो राजेश मैं भी चाहती हूँ कि हमारे घर में भी एक शानदार सोफा सेट हो जिसके सेंटर में एक खूबसूरत सी टेबल हो जिसे देखते ही मेरी सहेलियों और तुम्हारे दोस्तों के मुंह से एकदम निकले “वाव !”
अच्छा तो तुम्हारा मतलब है कि हमारा घर इसलिए घर नहीं है क्यूंकि हमारे पास एक शानदार सोफा सैट नहीं है ?” राजेश ने मुस्कुराते हुए कहा ।
“और तुम्हें तो पता है कि हमारे घर में सोफा रखने की जगह भी कहाँ है ?” राजेश ने वज़ाहत की ।
“मुझे पता है राजेश ! मगर मुझे एक कमरा चाहिए जहां मुझे एक शानदार सोफा रखना है बस !” कविता ने ज़िद के से अंदाज़ में कहते हुए अपनी कोहनी राजेश के कंधे से हटा ली और दूसरी तरफ़ देखने लगी ।
“देखो कविता घर में कुल चार कमरे ही तो हैं । एक बच्चों का स्टडी रूम है, एक हमारा बेडरूम है और एक कमरे में मेरा आफिशियल वर्क होता है जो मेरे लिए ज़रूरी है तो बताओ अब कैसे करेंगे ?” राजेश ने सवालिया नज़रों से एक पल के लिए कविता की जानिब देखते हुए कहा ।
“मुझे पता है । और जो भी गेस्ट आते हैं उन्हें बेडरूम में ही बिठाना पड़ता है मुझे । कितना ख़राब लगता है ! पता है आपको ?” कविता ने मुंह बनाते हुए कहा ।
“ठीक है बाबा ! अब मूड खराब मत करो । इसके बारे में भी सोचेंगे । राजेश ने गाडी के ब्रेक लगाते हुए कविता से कहा । बातों ही बातों में कब घर आ गया पता ही नहीं चला ।
अगले दिन डिनर पर कविता ने चहकते हुए राजेश से कहा “राजेश ये देखो मैं ने सब सेट कर दिया है” और ये कहते हुए वो मोबाईल पर राजेश को तस्वीरें दिखाने लगी “देखो ये सोफा सेट, सेंटर टेबल और ये पर्दे मैं ने आर्डर कर दिये हैं । कैसे हैं ?” कविता ने सवाल के साथ अपनी बात खत्म की ।
राजेश ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया “वेरी नाइस ! तुम्हारी पसंद का तो मैं हमेशा से ही कायल हूँ । तभी तो मैं ने तुम्हें पसंद किया स्वीट हार्ट ! “ राजेश ने कविता को छेड़ते हुए कहा ।
मगर कविता हमारे पास कोई एक्स्ट्रा कमरा भी तो नहीं है ?” राजेश ने सवाल किया ।
“है न राजेश ! बच्चों के स्टडी रुम के पास वाले कमरे को ड्राइंग रूम बना सकते हैं न ?” कविता ने कुछ कुछ सकुचाते हुए कहा ।
“और माँ बाबूजी कहाँ जायेंगे ?” राजेश ने सवालिया नज़रों से कविता की जानिब देखते हुए कहा ।
“राजेश ! माँ और बाबूजी के लिए वो कमरा बहुत बड़ा है । और फिर हमारे पास कोई दूसरा आप्शन भी तो नहीं है डार्लिंग ।“ कविता ने मासूमियत से कहा ।
“देखो राजेश मैं ने अपना काम कर दिया है । कल तक सब सामान भी डिलीवर हो जाएगा और परसों सन्डे है । परसों अनुपमा भी लंच के लिए आ जायेगी । फिर मुझे कमरा सेट भी करना पडेगा कब से गंदा पड़ा है । जले वाले भी लगे होंगे । देखो ! अब तुम्हारा काम बाक़ी है । तुमने प्रामिस किया था कि तुम कुछ न कुछ ज़रूर करोगे ।“ कविता ने राजेश की प्लेट में सलाद रखते हुए कहा ।
“ठीक है भाई ! मैडम का हुक्म सर आँखों पर !” राजेश ने सीधे हाथ से सैल्यूट की मुद्रा बनाते हुए कहा ।
“अब खाना खाने की इजाज़त है ?” राजेश ने मुस्कुरा कर पूछा ।
“बिलकुल इजाज़त है” कविता ने भी इठलाते हुए जवाब दिया ।
सन्डे का दिन आ गया । अनुपमा और उसका हसबैंड कविता के घर लंच के लिए पहुँच गए । अनुपमा ने ड्राइंग रूम में दाख़िल होते ही बड़े जोश और हैरत के साथ अपने दोनों हाथों को अपने होंठों पर रखते हुए, अपनी आँखों को पूरा खोलकर ज़ोर से चिल्लाकर कहा “अरे वाव कविता ! व्हाट आ ब्यूटीफुल सरप्राइज़ । कितना प्यारा ड्राइंग रूम है तेरा । और ये फर्नीचर कहाँ से लिया यार !”
कविता का सर गर्व से तन गया । उसने कनखियों से राजेश की तरफ़ देखा । राजेश ने भी मुस्कुराते हुए अपनी भंवों को उचका कर कविता की तारीफ़ की । कविता ने अनुपमा और उसके हसबैंड को बैठने का इशारा किया और खुद भी नए सोफे पर बैठ गई । थोड़ी ही देर में कमरे से ठहाकों की आवाजें गूजने लगीं । उधर छत पर बने स्टोर रूम में ख़ामोशी छाई हुई थी । स्टोर रूम की मद्धिम रोशनी में दो काले साए खामोश बैठे हुए थे ।
– अकमल नईम
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