सूफ़ी की कलम से.. बजट में जनता को वही मिलेगा जो उनके पूर्वजों को मिलता आया है
आज राजस्थान विधानसभा में एक बार फिर से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने चिर परिचित अंदाज में पानी पी पी कर बजट पेश करते नजर आए। सत्ता पक्ष वाले हर पंक्ति पर तालियां बजाते तो विपक्ष वाले हर बात पर मुँह सिकोड़ते। हर साल, हर राज्य में यही दृश्य देखने को मिलता है। बजट अच्छा हो या खराब, सत्ता पक्ष के विधायकों को बढ़ा चढ़ा कर बताना ही पड़ता है तो वही विपक्ष वालों को बजट कितना ही अच्छा लगे लेकिन फिर भी बजट को खामियों वाला बजट कहना ही पड़ता है अन्यथा पार्टी की तरफ से अनुशासनहीनता का नोटिस पकड़ा दिया जाता है।
अब आते हैं जनता पर जो बेचारी हर बार की तरह एक नयी उम्मीद के साथ बजट सुनने बैठती है लेकिन उन्हें भी बजट सुनने से वही मिलता है जो आजादी के समय से हमारे पूर्वजो को मिलता आ रह था। जिस तरह ए फॉर साइज के काग़ज़ों में राजस्थान का बजट छपा हुआ है वही बजट अगले दिन अखबारों में हूबहू छप जाएगा बस काग़ज़ का प्रकार और साइज बदल जाएगी। विधानसभा में बजट सुनने और सुनाने वाले पक्ष – विपक्ष थे और अब अखबारो मे सम्पादक और पाठक उनकी भूमिका अदा करेंगे।
एक कॉलम में सरकार समर्थक बजट को उम्मीदों का बजट बताते हुए तारीफों के पुल बांधेगे तो वही सरकार विरोधी निराशा का बजट करार देते हुए जनता के साथ विश्वासघात बतायेंगे, लेकिन ध्यान रहे जनता को वही मिलेगा जो उनके पूर्वजों को मिलता आ रहा था।
किसानो को बिना ब्याज ऋण उसी तरह से मिलेगा जैसा हर सरकार के प्रतिवर्ष के बजट में मिलता आ रहा है। बजट की पंक्तियों को ध्यान से पढ़ा जाय तो महसूस होता है कि कई पंक्तिया वही पढ़ दी गई है जो पिछले वर्ष भी पढ़ चुके हैं लेकिन इतना ध्यान से पढ़ने की जरूरत भी क्या है क्योंकि जनता को तो वही मिलना है जो उनके पूर्वजो को मिलता आ रहा था।
जैसे ही मुख्यमंत्री ने कर्माचारियों के लिए पिछले मार्च का आधे माह का वेतन देने की घोषणा की तो कर्माचारियों मे एसी हर्ष की लहर दौड़ी जैसे राष्ट्रीय स्तर का बड़ा मुद्दा सुलझ गया हो। कर्माचारियों के स्टैटस आधे माह के वेतन की खुशी से भर गए जैसे उनका आधा माह का नहीं बल्कि पूरे साल का वेतन रोक रखा हो। खैर कर्मचारियों को तो इतनी बड़ी सौगात मिल गई है लेकिन बेचारे संविदा कर्मी क्या करे?
हर साल की तरह इस बार भी वाट्स ग्रुप में एक दूसरे के ऊपर आरोप प्रत्यारोप लगाने लगे, ज़िम्मेदारो का इस्तीफा मांगने लगे। अब उन्हें कौन समझाये की आपस में लड़ने झगड़ने से क्या मिलेगा, मिलेगा तो वही जो हमारे पूर्वजो को मिलता आया है।
जिस क्षेत्र के लोगों के लिए बड़ी चीजों की घोषणा हो जाती है वह अपने अपने विधायकों का आभार प्रकट करने लग जाते हैं लेकिन ज्यादातर क्षेत्रों में बड़ी तो क्या छोटी चीजे तक नहीं मिलती है।
इस बात से तो सब भलीभांति परिचित हैं कि बजट भी क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व,जातिगत समीकरण एंव और चुनावी लाभ के आधार पर तय होता है तो फिर इन्हें आम जनता का बजट कहने की जगह चुनिंदा लोगों एंव क्षेत्रो का बजट कहना उचित होगा। कुछ क्षेत्रों की जनता को छोड़कर बाकी जनता को तो वही मिलेगा जो उनके पूर्वजो को मिलता आया है।
बजट में रोजगार की बाढ़ तो ऐसे आती है जैसे बरसात में मेढ़क। जैसे जैसे दिन गुजरते जाते हैं वैसे वैसे ही अगला बजट आने को होता है लेकिन पिछली घोषणाओं की नौकरियों को फिर से उसी मे शामिल कर वाह वाही लूट ली जाती है। इस प्रकार राज्य के बेरोजगारों को भी वही मिलता है ,जो हमारे पूर्वजों को मिलता आया है।
– नासिर शाह (सूफ़ी)
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