स्वतंत्र भारत का 72 वां गणतंत्र दिवस और मजबूर किसान

Sufi Ki Kalam Se

सूफ़ी की कलम से
स्वतंत्र भारत का 72 वां गणतंत्र दिवस और मजबूर किसान
हमारे देश को आजाद हुए 74 साल बीत चुके हैं और आज हम 72 वां गणतंत्र दिवस दिवस मना रहे हैं। आजादी के 74 सालो बाद तो हमारे देश में किसानों की आर्थिक स्थिति काफी सुदृढ़ हो जानी चाहिए थी मगर इतने सालो बाद भी देश का अन्नदाता अपनी खेती बाड़ी को बचाने के लिए मजबूर और बेबस होकर खड़ा है। इस बात से सब भलीभांति परिचित हैं कि देश की आजादी के बाद हमारा देश भारत, विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र बन गया।
हमारा देश अंग्रेजो एंव राजा महाराजाओं की गुलामी से तो मुक्त हो गया, लेकिन समय गुजरने के साथ साथ देश की जनता देश की ही राजनीति में उलझ कर रह गई। हमारे अपनों ने ही गणतंत्र की परिभाषा बदल दी।


गणतंत्र क्या है :-
एक गणराज्य या गणतंत्र सरकार का एक रूप है जिसमें देश को एक सार्वजनिक मामला माना जाता है, न कि शासकों की निजी संस्था या सम्पत्ति।
उपरोक्त परिभाषा से स्पष्ट है कि देश किसी की निजी संपति नहीं है तो फिर क्यों आजकल हमारे देश की सरकारे मनमाने कानून जनता पर थोप रही है। लोकतंत्र में जनता जिसे चुनती है उनकी जिम्मेदारी उनके अनुसार कार्य करने की होनी चाहिए लेकिन वर्तमान राजनीतिक परिपेक्ष्य में इसके उलट काम देखने को मिल रहा है।


किसान आंदोलन :-
देश में कृषि कानूनो के खिलाफ सम्पूर्ण देश में किसानो सहित ज्यादातर जनता इनके खिलाफ है लेकिन फिर भी सरकार ये कानून वापस नहीं ले रही है। किसान 62 दिनों से लगातार राजधानी दिल्ली सहित कई राज्यों में इस कानून को वापस लिए जाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं। पूरी कड़कड़ाती सर्दी, इन किसानो ने खुले आसमान के नीचे निकाल दी लेकिन देश में किसानो और गरीबो की सरकार होने का दावा करने वाली केंद्र सरकार ने उनको ऐसे ही मरने के लिए छोड़ रखा है। इन दो महिनों में लगभग डेढ़ सौ किसानों ने कानून के विरोध में अपने प्राण त्याग दिया लेकिन सरकार ठस से मस नहीं होना चाहती है। सरकार का ये मनमर्जी वाला रवैया और गणतन्त्र की परिभाषा दोनों काफी भिन्न है।
संभवतया आजादी के बाद यह पहला अवसर होगा जब गणतंत्र दिवस के अवसर पर देश के लाखो किसान और जनता अपने ही देश की सरकार के कानून के विरुद्ध सड़कों पर ट्रैक्टर मार्च निकाल कर प्रदर्शन करेंगे।


एक तरफ किसान और देश की ज्यादातर जनता है जो कानूनो के विरुद्ध मोर्चा खोले हुए हैं तो दूसरी तरफ सरकार एंव उनके समर्थक कृषि कानूनो को किसानों के हित बताने का दावा करते हैं। पूर्व में मैन स्ट्रीम मीडिया का काम जनता की समस्याओं को सरकार तक पहुंचाना होता था लेकिन वर्तमान में मुख्य धारा का मीडिया जनता की समस्या उठाना तो दूर, बल्कि देश की जनता को हो ही आतंकवादी, खालिस्तानी साबित करने पर तुले हुए हैं।
वर्तमान स्थिति को देखते हुए देश की जनता असमंजस में है, कि इस गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रीय पर्व का जश्न मनाए या फिर किसानो के साथ खड़े होकर गणतंत्र को बचाने की आवाज उठाए।

  • नासिर शाह (सूफ़ी)

Sufi Ki Kalam Se

44 thoughts on “स्वतंत्र भारत का 72 वां गणतंत्र दिवस और मजबूर किसान

  1. Pingback: šeit
  2. Pingback: Native Smokes
  3. Pingback: Buy Guns Online
  4. Pingback: jazz ambience
  5. Pingback: USA Gun Shops
  6. Pingback: togel sgp
  7. Pingback: bk8 thai
  8. Pingback: Guns Store USA
  9. Pingback: child porn
  10. Pingback: child porn
  11. Pingback: child porn
  12. Pingback: Learn More Here
  13. Pingback: child porn
  14. Pingback: child porn
  15. Pingback: sideline
  16. Pingback: ltobet
  17. Pingback: fuck girl
  18. Pingback: tải 789club
  19. Pingback: burnout
  20. Pingback: university
  21. Pingback: bcm ar15 rifles

Comments are closed.

error: Content is protected !!