चेतन भगत के नॉवेल (रेवोल्यूशन 2020) में, पत्रकारिता क्रांति ने कुछ ही पन्नों में दम तोड़ दिया!
पुस्तक समीक्षा
रेवोल्यूशन 2020
लेखक – चेतन भगत
समीक्षक – नासिर शाह सूफ़ी
अँग्रेजी के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार चेतन भगत का 2015 मे आया नॉवेल रेवोल्यूशन 2020, भले ही इस उम्मीद पर लिखा गया हो कि आने वाले 2020 मे वाकई मे भारत में एसी क्रांति आएगी और सब कुछ जादू जैसे बदल जाएगा। आज हम 2021 मे जी रहे हैं और पुस्तक का टाइटल (रेवोल्यूशन 2020) है जो 2009 में आई एक 2012 नामक हॉलीवुड फिल्म जैसा फ्लॉप हो गया है। रोनाल्ड आमेरिच द्वारा निर्देशित फिल्म में 2012 मे आने वाली सुनामी के बारे में सम्भावित घटना का वर्णन करने की कोशिश की गई थी लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। ठीक ऐसा ही चेतन भगत के 2011 मे आए अपने पांचवे उपन्यास ‘रेवोल्यूशन 2020’ के टाइटल के साथ भी हुआ है।
हालांकि नॉवेल मे कोई कमी नहीं है। नॉवेल जिंदगी का आईना होता है और इसमे जो त्रिकोणीय प्रेम शृंखला लिखी गई है उसे बेहतरीन और रूचिकर कहा जा सकता है। नॉवेल मे गोपाल मिश्रा, राघव कश्यप और आरती प्रधान नामक तीन युवाओ के बीच त्रिकोणीय प्रेम शृंखला बुनी गई है। कहानी वैसे तो सामान्य है लेकिन जो मुद्दे उठाये गये हैं वो वाकई क्रांतिकारी साबित हो सकते थे लेकिन क्रांति होने से पहले, नॉवेल के पन्नों पर ही समाप्त हो गई। जिस क्रांति पर नॉवेल का नामकरण किया गया वो क्रांति नॉवेल के कुछ पन्नों तक ही सीमित है जो शुरू होती है तो ऐसा लगता है कि वाक़ई आगे बहुत कुछ होगा लेकिन कहानी मे क्रांति इतनी सी देर रहती है जितनी देर दशहरे का रावण। नॉवेल के हीरो के लिए चेतन भगत ने पाठकों पर ही छोड़ा है कि वह गोपाल और राघव मे से किसे हीरो कहेंगे?
वाराणसी का रहने वाला गोपाल मिश्रा नॉवेल का एक लूजर केरेक्टर है जो आईआईटी के एन्ट्रेन्स एक्जाम में नाकाम होकर एक भ्रष्ट विधायक के साथ मिलकर कॉलेज खोल लेता है। उसे उसकी क्लासमेट आरती से प्रेम था जिसे वह कहीं बार इज़हार भी कर चुका था लेकिन आरती उसे सिर्फ दोस्त मानती थी। दूसरी और राघव नाम का लड़का उनका तीसरा दोस्त था जो आधे नॉवेल तक सहायक हीरो के तौर पर था लेकिन धीरे-धीरे, वह नॉवेल के हीरो का प्रबल दावेदार हो जाता है। आईआईटी एन्ट्रेन्स एक बार मे ही क्लीयर कर वह वाराणसी के ही बीएचयू को चुन लेता है लेकिन उसकी असल हॉबी इंजीनियरिंग ना होकर पत्रकारिता था। और वह पत्रकारिता के खातिर इंजीनियरिंग की अच्छी-खासी जॉब छोड़ देता है। इसी पत्रकारिता के चलते वह क्षेत्रीय विधायक शुक्ला और आरती के चलते गोपाल को दुश्मन बनाकर अपना सब कुछ बर्बाद कर लेता है। नॉवेल की एकमात्र नायिका आरती का झुकाव नॉवेल के शुरुआती 20 प्रतिशत हिस्से में गोपाल की तरफ, फिर बीच के 50 फीसदी हिस्से में राघव की तरफ और आखिर के 30 फीसदी हिस्से में वापस गोपाल की तरफ हो जाता है लेकिन गोपाल नॉवेल के आखिर में बड़े नाटकीय ढंग से उसे राघव के हवाले कर देता है। आरती के लिए गोपाल का प्यार सबसे ज्यादा था और राघव आरती को प्यार तो करता था लेकिन गोपाल जितना नहीं। वही आरती, गोपाल और राघव को लेकर हमेशा कन्फ्यूज्ड रही है या यों कह लीजिए कि जो जिस समय दोनों नायकों में से जिसके सितारे बुलंद रहे आरती उसी के साथ रही।
एक बार फिर से नॉवेल के टाइटल पर आते हैं जो क्रांति को दर्शाता है लेकिन पूरे नॉवेल मे क्रांति सिर्फ कुछ पन्नों तक ही सीमित थी और वो पन्ने भी हमेशा किताब में ही रहे। राघव की पत्रकारिता की बात अगर वर्तमान परिप्रेक्ष्य में की जाए तो आज की गोदी मीडिया से बिल्कुल भिन्न थी। राघव जैसे पत्रकार नॉवेल मे सत्ता तक पहुँच गए जबकी हकीकत में राघव जैसे पत्रकारों को आज भी नौकरियों से निकाला जा रहा है और तिरस्कृत किया जा रहा है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि चेतन भगत भारतीय राजनीति के काफी करीब है और समसामयिक मुद्दो पर लिखते रहते हैं लेकिन आश्चर्य की बात है कि वर्तमान समय में चेतन भगत स्वयं आज की पत्रकारिता के पक्ष में हैं तो ऐसे में उनके नॉवेल के अंत में राघव की पत्रकारिता की जीत बताना समझ से परे है।
गौरी लकेंश, कलबुर्गी जैसे पत्रकारों को राघव की तरह पत्रकारिता करने पर अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था लेकिन नॉवेल में तो एसी पत्रिकारिता करने वाला राजनीति तक पहुँच जाता है। ऐसे में चेतन भगत से यह सवाल पूछना लाजमी हो जाता है कि राघव जैसे पत्रकार को आपने नॉवेल के अंत में हीरो बनाकर उसकी क्रांति को रहस्मय तरीके से कामयाब कैसे बना दिया जब कि नॉवेल के समाप्त होने से कुछ पन्नों पहले तक तो वह अपनी जिंदगी के दिन गिन रहा था। हो सकता है चेतन इस सवाल के जवाब में यह कहे कि इस देश में ईमानदारी ज्यादा देर नहीं चलती, देर सवेर उसे बेईमानी वाला रास्ता चुनना ही पड़ता है।
गोपाल का तैयारी के लिए कोटा जाना और लगभग पचास पन्नों में कोटा का भ्रमण काफी सराहनीय है इसके अलावा पूरी कहानी वाराणसी के इर्द गिर्द चलती है। नॉवेल में कॉलेज खोलने की प्रक्रिया इतने लंबे तरीके से समझाई गई है जिससे लेखक की ज्ञानसीमा का अंदाजा तो झलकता है लेकिन पाठक काफी बोर होते हैं। इस प्रक्रिया को सरल भी किया जा सकता था। साथ ही शिक्षा और राजनीति के सम्बन्ध में देश में जो गंदा व्यवसाय फैल रहा है उस पर चेतन भगत ने करारा प्रहार किया है।
गोपाल और आरती के बीच के अंतरंग दृश्य नॉवेल मे ऊर्जा का संचार करते हैं। चेतन भगत के कई नॉवेल पर फिल्में बनती रहीं हैं, अगर इस नॉवेल पर भी कभी फिल्म बने तो मुझे लगता है कि शाहरुख खान, गोपाल के किरदार के साथ पूरा न्याय करेंगे।
- – नासिर शाह (सूफ़ी)
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