अतिक -अशरफ़ और असद की मौत पर उठते सवाल ???
सरकार ,पुलिस ,मीडिया या कोई गैंग! कौन है आख़िर ज़िम्मेदार ?
कुछ समय पहले तक जो नाटकीय दृश्य केवल फ़िल्मों में दिखाए जाते थे ,वो अब आप देश भर में रियल में देख सकते है । विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में जिसे पूर्व में भी ज़्यादातदार लोग जंगल राज बताते थे और अभी भी ज़्यादातर लोग जंगल राज ही बताते है । यूपी में जो हो रहा है वो तो पूरी दुनिया देख ही रही है की किस तरह से वहाँ की सरकार अपना काम कर रही है ।
एक तरफ़ यूपी की योगी सरकार अपने रामराज्य होने का दावा करती है दूसरी तरफ़ इसी राज्य के हार्डकोर अपराधी जय श्री राम के नारे लगाते हुए दिन दहाड़े गोलियाँ चला कर यूपी सरकार के रामराज्य पर प्रश्न चिन्ह लगाते है ।ऐसे में सर्वप्रथम तो यूपी सरकार को अपने रामराज्य की परिभाषा स्पष्ट करनी चाहिये कि उनके अनुसार रामराज्य किस प्रकार का होता है ?उसके बाद ये भी स्पष्ट करना चाहिये की ये जो अपराधी धार्मिक नारे लगाकर दहशत फैला रहे है वो इसी रामराज्य का हिस्सा है या नहीं ? अगर वो इन दहशतगर्दों के पक्ष में नहीं है तो उन्हें तुरंत प्रभाव से अपनी तुलना रामराज्य से ना कर अपनी विफलता स्वीकार कर माफ़ी माँगनी चाहिए क्योंकि रामराज्य ऐसा हरगिज़ नहीं रहा होगा। और यदि सरकार माफियाओ के ख़ात्मे के नाम पर ऐसी कारवाई को स्वीकार करती है तो उन्हें ये बात भी स्पष्ट कर देना चाहिए कि वो किस तरह की शासन व्यवस्था स्थापित करना चाहते है है ?
माफिया अतिक अहमद के बेटे असद के एनकाउंटर पर हज़ारों प्रश्न ठीक से पैदा भी नहीं हुए थे की माफिया अतिक अहमद और उसके भाई अशरफ़ को सरे आम पुलिस कस्टडी में गोलियों से भून दिया जाता है और फिर भी अपराधी को पुलिस खरोंच तक नहीं दे पाती है ।ये वही यूपी की बहादुर पुलिस है जिसने दो दिन पहले ही मोस्ट वांटेड रहे असद और ग़ुलाम का बड़ी फुर्ती से एनकाउंटर कर वाहवाही लूटी थी लेकिन अतिक- अशरफ़ के अपराधियों के सामने उनके हाथ काँपने लगे । यूपी की बहादुर पुलिस ने बड़ी आसानी से तीन हमलावरों को मीडियाकर्मी बताकर पुलिस कस्टडी तक आने दिया और मर्ज़ी जितनी गोलियाँ चलाने दी उसके बाद एक भी हमलावर पर कोई जवाबी हमला ना कर बड़ी आसानी से उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया । आश्चर्य की बात है की इतनी बड़ी घटना को अंजाम देने के बाद दो व्यक्तियों की हत्या के अलावा कोई हताहत नहीं हुआ । भारी भरकम पुलिस जाबता और मीडियाकर्मियों की मोजूदगी में इतना बड़ा हादसा हुआ जो ना सिर्फ़ सरकार और पुलिस पर प्रश्न चिन्ह लगाता है बल्कि वर्तमान गोदी मीडिया को भी कठघरे में खड़ा करता है । इस घटना का चश्मदीद होने के बाद भी मीडिया घटना को एक तरफ़ा बताकर सरकार का सुरक्षा कवच बना हुआ है ।
गोदी मीडिया के चैनल अतिक के एनकाउंटर को माफिया मुक्त बता रहे है ,ऐसे में उनसे ये प्रश्न पूछना बनता है की एक माफिया राज तो ख़त्म हो गया लेकिन उसे ख़त्म करने वालों को माफिया कहा जाएगा या सज्जन ?अगर वो सज्जन नागरिक है तो गोदी मीडिया को उन्हें इनाम देने की अपील भी सरकार से करना चाहिए और अगर वो उन्हें भी अपराधी मानती है तो अपनी पक्षपात वाली न्यूज़ पर माफ़ी माँगनी चाहिए लेकिन ना तो सरकार और ना ही पुलिस ऐसा कुछ करने वाली है और ना ही मीडिया !
और हाँ इसका एक महत्वपूर्ण पहलू और भी है जो इन सबसे भी भारी है और वो है सरकार समर्थित गैंग जो इस तरह की घटनाओं पर तुरंत प्रभाव से ऐक्टिव होकर सोशल मीडिया पर सरकार का काम सही ठहराने के साथ साथ सवाल करने वालों को देशद्रोही या ग़ैरज़िम्मेदार नागरिक होने का सर्टिफिकेट बाँटने लगती है और इस बात में भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि सोशल मीडिया पर इस तरह कि हरकतें करने वालों की पहचान के बाद भी ऊन पर कोई कार्यवाही नहीं होती है क्योंकि वो मासूम जनता में आ जाते है और जो दूसरी तरह की जनता है जिनके मन में कोई सवाल उठता है उन्हें अपने सवाल दबाए ही रख लेना चाहिए क्योंकि विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में सवाल पूछना मना है ?